Tuesday, April 16, 2024
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धर्म- योग से खुलेगी सुखमय व सफल जीवन की राह


योग-दिवस के अवसर पर एपीजी शिमला विश्वविद्यालय में योग गुरुओं ने छात्रों को पढ़ाया सफल-जीवन का पाठ
शिमला, देह को सुगठित, इन्द्रियों को सुव्यवस्थित और मन को सुसंस्कारित करना योग का उद्देश्य है। जब बात शरीर और मन को सुव्यवस्थित और संस्कारित करने की आती है तो योग की आवश्यकता होती है, ध्यान की आवश्यकता होती है ताकि नकारात्मक प्रभाव को खत्म कर सकारात्मक जीवन जिया जाए और दुःखों का निवारण कर सही मनुष्य का जीवन जिया जाए। यह बात राजधानी शिमला में स्थानीय एपीजी शिमला विश्वविद्यालय और वेंकटेश्वर ओपन विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान और कुलपति प्रो. डॉ. आर.के. चौधरी के तत्वावधान में अंतराष्ट्रीय योग दिवस के पावन अवसर पर आओ अपने उद्देश्यों को जाने विषय पर एक दिवसीय अंतरास्ट्रीय वेबिनार सोमवार कोआयोजित किया गया जिसमें एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों और बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर योग गुरुओं के विचार सुने कि योग साधना से ही ईश्वर प्राप्ति, सकारात्मक प्रभाव से सफल मनुष्य जीवन और योग धर्म से सभी दुःखों का निवारण है। इस कार्यक्रम में सान-फ्रांसिस्को संयुक्त राज्य अमेरिका से योग गुरु व सन्यासी स्वामी पराकाष्ठानंदा और अनंतबोध योग लिथुआनिया के निदेशक स्वामी अनंतबोध चैतन्य ने बतौर मुख्यातिथि व योग शिक्षक शिरकत कर छात्रों, शिक्षकों और कार्यक्रम में शामिल लोगों को सफल मनुष्य का जीवन जीने की राह दिखाई। कार्यक्रम का सुभारम्भ करते हुए वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. आर.के. चौधरी ने अंतरास्ट्रीय योग दिवस के महत्व और संसार के सभी लोगों के जीवन में योग की महत्वपूर्ण भूमिका पर अपने विचार साझा किए और कहा कि योग जीवन का मुख्य हिस्सा है जिसके बिना जीवन न खुशहाल है न ईश्वर का सानिध्य है न जीवन में सकारात्मक उन्नति है न दुःखों का निवारण है। कुलपति चौधरी ने कहा कि आज के दौर विश्व मानव समुदाय स्वामी विवेकानंद और परमहंस जैसे विश्वगुरुओं व धर्मगुरुओं की ओर देख रहा है ताकि विश्व मानव समुदाय को शांतिपूर्ण जीवन, सफल मानव जीवन और उनके सुझाए गए आध्यात्मिक ज्ञान से मानवरूपी कमल हमेशा खिलता रहे और विश्व को मानव विकास के लिए हमेशा प्रेरित करते रहें। कुलपति चौधरी ने दिव्यआत्मा स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि किस तरह स्वामी विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागो शहर में पश्चिमी लोगों भारतीय वैदिक व सनातन संस्कृति से अवगत कराया था और लोगों को सतचित, शांतिपूर्ण और सकारात्मक जीवन जीने का मूलमंत्र दिया था जिससे भारत की संस्कृति, ज्ञान, वेदों से नई सीख और आध्यात्मिक जीवन से सभी दुःखों का निवारण का सूत्र मिला था और फिर से भारत की पहचान विश्वगुरु के तौर पर बरकरार हुई थी और आज योग के माध्यम से विश्व समुदाय को निर्मल कर रहा है। स्वामी पराकाष्ठानंदा ने अपने व्यख्यान के माध्यम से छात्रों, शिक्षकों और वेबिनार में शामिल लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि योग हमारे जीवन से जुड़ा अभिन्न अंग है जिससे सतचित आता है उससे ही वैचारिक शक्ति में सकारात्मक सोच उपजती है, योग से ही सभी प्रकार की विद्याओं का ज्ञान मिलता है और उससे आध्यात्मिक ज्ञान और उससे ईश्वर और धर्म-कर्म से सभी प्रकार के दुःखों से मुक्ति और स्नेहपूर्ण जीवन और सम्पूर्ण उन्नत मनुष्य का जीवन फलता-फूलता है। पराकाष्ठानंदा ने बताया कि सही मनुष्य का जीवन जीने के लिए जीवन में संतुलन होना जरूरी है तभी योग है ताकि जीवन-कर्म का जोड़ व योग डगमगाने से बचे क्योंकि मनुष्य नकारात्मक सोच के वश गलत राह पर आसानी से चला जाता है और कोई भी कर्म खाली नहीं जाता जिसके परिणाम नकारात्मक भी हो सकते हैं और साकारात्मक भी और योग और आध्यात्मिक ज्ञान ही है जो मनुष्य को नकारात्मक रास्ते में जाने से रोकता है। उन्होंने कहा कि योग केवल शरीर से जुड़ी संजीवनी नहीं है बल्कि यह मन, बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, कुशलता, आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर का साथ पाने, शांति और प्रेम का वाहक भी है ताकि मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त भोगों का सही इस्तेमाल कर जीवन में तरक़्क़ी और खुशहाली के फूल खिले रहें। पराकाष्ठानंदा ने कहा कि बिना ईश्वर के जीवन में कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा कि ईश्वर का साथ तभी मिलता है जब मनुष्य पूरी तरह अपने कर्म-धर्म की सकारात्मक साधना के साथ उसके आगे नतमस्तक होकर उसकी शरण में रहता है तभी मनुष्य को किसी भी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए क्योंकि ईश्वर ही बचाता है, ईश्वर ही रक्षा भी करता है, ईश्वर ही सफलता की ओर ले जाता है परंतु मनुष्य कर्म महान होना चाहिए। स्वामी नंदा ने छात्रों को यह पाठ पढ़ाते हुए कहा कि अर्जुन की तरह सफल विजेता और कर्मशील बनना है तो आपको महाभारत और भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भगवद्गीता में अर्जुन को दिए गीता- उपदेशों का अध्धयन कर जीवन के सार को समझना चाहिए कि किस तरह दुःखों पर विजय प्राप्त कर सफल जीवन जिया जा सकता है। उन्होंने धर्म-योग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धर्म-योग एक जीवन प्रणाली है, यह एक शक्ति है जो व्यक्तियों को व्यक्तियों से जोड़ती है और इसके बिना साकारत्मक संवाद कायम नहीं होता। स्वामी नंदा ने धर्म की व्याख्या कर छात्रों को समझाया कि वैचारिक स्पष्टता तभी आती है जब हम सर्वोतो भावेव वस्तुओं पर विचार करते हैं और उससे जीवन को सात्विकता मिलती है और नए साकारात्मक ज्ञान से संसार का भला होता है। स्वामी आनंदबोध चैतन्य ने अपने संक्षिप्त व्याख्यान में छात्रों व शिक्षकों के साथ योग विषय पर अपने विचार साझा किए और कहा कि कोई भी काम करें उसे पूरे प्रोफेशनल तरीके से करें जिससे से ऐसा योग हो जाए जो आपकी जीवन को ईश्वरीय ज्ञान, शांति, प्रेम और मानव विकास में सहायक हो। एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान ने कार्यक्रम को संपन्न करते हुए कहा कि योग के साथ कर्म भी महान होना चाहिए ताकि सही दिशा में किया गया साकारात्मक प्रयास सार्थक हो और कहा कि कर्म के साथ ईश्वर की कृपा भी हो जो कर्म योग, धर्म-योग और आध्यात्मिक ज्ञान और कर्मशील होने से होती है तभी मनुष्य अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकता है। कुलपति चौहान ने कहा कि मनुष्य शरीर शरीर नहीं बल्कि यह ईश्वर-शरीर ही है जिसे मनुष्य कर्म-साधना, योग साधना और आध्यात्मिक ज्ञान से ईश्वरीय-शरीर से सिंचित कर सकता है। इस कार्यक्रम की एंकर डॉ. प्राची वैद रहीं। कार्यक्रम के अंत में प्रश्न-उत्तर सेशन रखा गया जिसमें कई छात्रों और शिक्षकों ने योग व आध्यात्मिक गुरुओं से प्रश्न पूछकर योग, योग-धर्म, आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन में सफलता प्राप्ति संबंधित प्रश्न किए जिनका उत्तर देते हुए उनकी कई शंकाओं को दूर किया।

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