Friday, March 29, 2024
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गुरूनानक जी की जयंती पर 551वां ‘गुरू पर्व’

गुरूनानक देव जी सिखों के प्रथम गुरू हुए। सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पंजाब के शेखपुरा जिले के राय-भोई-दी तलवंडी नामक स्थान जो अब पाकिस्तान में है श्री गुरूनानक जी का जन्म हुआ, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा की तिथि को गुरूनानक जी की जयंती पर गुरू पर्व भारत सहित विष्व भर में गुरू पर्व मनाया जाता है। कल यानि सोमवार, 30 नवम्बर को 551वां गुरू पर्व मनाया जा रहा है।

हिन्दूओं सहित सिख पंथ के लोगों के लिए ये दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि सांसारिक कार्यों में नानक देव जी का मन नहीं लगता था। ईष्वर की भक्ति और सतसंग में ही उनकी रूचि अधिक थी।

गुरु नानक देव को सिख पंथ का प्रथम गुरु माना जाता है और सिख पंथ की स्थापना भी गुरु नानक देव जी ने ही की थी। माना जाता है कि गुरु नानक जी ने अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, धर्म सुधारक, देश भक्त और कवि के गुण समेटे हुए थे।

गुरुग्रंथ सिख पंथ का सबसे प्रमुख धर्म ग्रंथ माना है। 1705 में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया था। इसमें कुल 1430 पृष्ठ है।

बचपन से ही शांत प्रवृति के गुरु नानक देव आंखें बंद कर ध्यान और चिंतन में लगे रहते थे। इससे उनके माता-पिता चिंतित हो गए और पढ़ने के लिए उन्हें गुरुकुल भेज दिया गया। गुरुकुल में नानक देव के प्रश्नों से गुरु निरुत्तर हो गए। अंत में नानक देव के गुरु इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ईश्वर ने उन्हें ज्ञान देकर धरती पर भेजा है।

यह भी कहा जाता है कि गुरु नानक देव को एक मौलवी के पास भी ज्ञानार्जन के लिए भेजा गया था लेकिन वो भी नानक देव के प्रश्नों को हल नहीं कर पाए। शादी के कुछ दिनों बाद ही गुरु नानक देव घर-द्वार छोड़कर भ्रमण पर निकल गए थे। उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य हिस्सों की यात्रा की और लोगों को उपदेश दिए। गुरु नानक देव ने पंजाब में कबीर की निर्गुण उपासना का प्रचार भी किया और इसी के चलते वो सिख संप्रदाय के गुरु बने। उसके बाद से ही गुरु नानक देव सिखों के पहले गुरु के रूप में प्रतिस्थापित हुए।

  1. गुरूनानक जी का जन्म 1469 में उस समय हुआ तब देश धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से अंधकार में था। जिसके बारे में भाई गुरूदास भी करते हैं कि ये केवल एक अंधेरा नहीं था। अंधेरा तो हल्के से प्रकाश से भी समाप्त हो जाता है लेकिन ये एक कोहरा था, जिसे समाप्त करने के लिए गुरूनानक जी एक तेज हवा और बारिश के रूप में इस धरा पर प्रकट हुए। 711 ईस्वी पूर्व मोहम्मद बिन कासिम के भारत में आने से लेकर 1469 तक इसी प्रकार के एक कोहरे की स्थिति बनी रही।
  2. गुरूनानक जी बताते हैं कि एक मनुष्य देवता कैसे बने। वे कहते हैं कि देवता बनना कोई मुश्किल काम नहीं है इसके लिए व्यक्ति का ज्ञानवान और शस्त्रधारी होना जरूरी है। जिससे शस्त्रे-शास्त्रे च कोशलम् भी कहा गया है।
  3. गुरूग्रंथ साहिब के अनुसार श्री गुरूनानक जी के 11 स्वरूप हुए हैं। आज के समय हम उनके 11वें स्वरूप को देखते हैं।
  4. गुरूनानक जी ने हर धर्म और मजहब के लोगों से संवाद किया। वह हरिद्वार गए, जगन्नाथ पूरी गए, मक्का और मदीना भी गए। लेकिन उस समय जो भी लोग उनके विचार को सुनते वह उसे सही नहीं मानते हैं, जिसके जवाब में गुरूनानक जी उन्हें समझाते कि असल में धर्म की जो परिभाषा तैयार कर दी गई है वह सही नहीं है उसमें काफी विकार आ गए हैं, जिससे सुधारने की आवश्यकता है।
  5. 17वीं शताब्दी में श्री गुरूनानक जी के बारे में भाई गुरूदास कहते हैं उन्हें कोई जाहर पीर समझता था कोई जगत गुरू और कोई बाबा। इसलिए उनकी समाई (विचारों) को देश और काल से नहीं बांधा जा सकता है।
  6. वर्तमान में गुरू मंत्र देते समय षिष्यों को कहते हैं कि वह इसे किसी से सांझा न करे। लेकिन गुरू नानक जी ने न केवल स्वतंत्र रूप से ओंकार का मंत्र दिया बल्कि उसके साथ गिनती का ‘एक’ अक्षर भी जोड़ दिया। जो स्पष्ट था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक ही है कोई अलग-अलग नहीं। उन्होंने लोगों को अपनी इंद्रियों को नियंत्रण करने, संतोष रखने, विचारों में दृढ़ता रखने, एक प्रभू का सुमिरन करने जैसे सात मुख्य बातें कहीं।
  7. गुरूनानक जी ने जहां उन्होंने ने सत्य के महत्व को उन्होंने सर्वोपरि बताया वहीं उसके भी ऊपर सच्चा जीवन बताया। उनका मानना था कि गुरूवाणी सच के बिना कुछ नहीं है और सच के रास्ते पर ही चल कर सभी बीमारियों (विकारों) का अंत किया जा सकता है।
  8. गुरूनानक देव जी ने गुरूवाणी में सबसे पहले कहा कि वे दबे और कुचले लोगों के साथ हैं और ये उन्होंने केवल कहा ही नहीं बल्कि अपने कारज से करके भी दिखाया। भाई मर्दाना भी उनमें से एक रहे जो निरंतर गुरूनानक जी के साथ रहे। वे कहते थे कि जोत को जानों तो दूसरा भी अपना लगेगा। गुरूनानक जी ने स्वयं को भूतना और बेताला तक भी कहा, जिसका अभिप्राय सभी में सम्मानता को तलाशना था।
  9. गुरूनानक जी का मानना था कि ब्राह्मण कहलाने का वहीं हकदार है जो कि ब्रह्म का चिंतन करता है। उसी से पार और उद्धार हो सकता है। उनका कहना था कि हम अहंकार और जगबंदी में जकडे़ हुए हैं। हमारे कर्मकांडों ने हममें मौजूद एकता के सुत्र को इतना कमजोर बना दिया है कि हम खाने-पीने पर भी झगड़ा करते हैं। उनका कहना था कि जिसके खाने से हमारा मन अपवित्र होता हैं वहीं खराब है बाकि सब पवित्र है।
  10. गुरूनानक जी जीवन के आनंद के बारे में कहते हैं कि गुलामी में नहीं जीना है। शारिरिक रूप से किसी भी प्रकार की गुलामी में जीने को उन्होंने बेहराम बताया। उन्होंने तो यहां तक कहा कि यदि आप जान देने को तैयार हों तो कोई भी गुलामी आपको जकड़ नहीं सकती है। सर्वप्रथम गुरूवाणी में गुरूनानक देव जी ने ही शीश भेंट करने की बात की थी, जिससे बाद में गुरू गोबिन्द सिंह ने प्रकट रूप में समझाया था।
  11. गुरूनानक जी ने पवन को गुरू और पानी का माता की संज्ञा दी जिसके पीछे न प्रकृति का संरक्षण था बल्कि समाज में जातिगत भेदभाव के चलते इनके उपयोग पर कुछ लोगों के लिए लगी पाबंदी को भी समाप्त करना था।
  12. गुरूनानक जी धन के बारे में कहते हैं कि माया की जरूरत तो है लेकिन ज्यादा की भी जरूरत नहीं है। जिसके पास ज्यादा है वह भी चक्कर में फंसा रहता है। इस तरह मनुष्य न तो अभाव में रहे और न ही माया के प्रभाव में रहे। जबकि 150 वर्ष पूर्व कार्ल माक्र्स और लैनिन जैसे विचारकों ने कहा था कि सर्दी का मौसम जिसके हक में है वह स्वयं ले जाएगा। लेकिन इसके विपरित गुरूनानक जी कहते थे कि किसी का हक मारना अपवित्र काम है।
  13. गुरू नानक जी ने मानवीय मनोविज्ञान को भी बखुबी प्रस्तुत किया। उससे विचारों से पूर्व समझा जाता था कि जो जितना झूकता है वह उतना विनम्र होता है, लेकिन गुरूनानक जी ने कहा कि जो झूकता है वह भारा होता है लेकिन जो पांव ही पड़ता है वह अपराधिक श्रेणी का व्यक्ति होता है। इसलिए कोई शीश नीचे करता है तो उसका मतलब हर बार नम्रता ही नहीं हो सकती है। इस तरह उन्होंने सच्चे और झूठे में फर्क को समझाया।
  14. गुरू नानक जी का मानना था कि धार्मिक पुस्तकों में जो ज्ञान है उसे केवल पढ़ा भर जरूरी नहीं है बल्कि उसके अनुसार चलना भी जरूरी है जिससे व्यक्ति के भीतर का अंधकार समाप्त हो सके। वे कहते हैं कि भगवान के डर की भट्टी और अपने कर्मों की दीया सलाई से ही प्रकाश संभव है।
  15. गुरूनानक जी मन की कमजोरी को हर प्रकार की बीमारी का मुख्य कारण मानते हैं, जिससे आज का विज्ञान भी मान्यता देता है। वे कहते हैं कि संतोष, साधना और ज्ञान के यज्ञ तथा शारीरिक स्वाद से बचने वाला व्यक्ति ही जमदूत को ठूडा मार सकता है अर्थात अकाल मृत्यू से बच सकता है।
  16. गुरूनानक जी कहते हैं कि जो साधु भगवान के नाम पर कमाई कराता है वही असली साधू है जो दूसरों का पंथ उजाड़े वह साधू नहीं है।
  17. गुरुनानक देव जी कहते हैं कि सच्चा साधु वही है जो भगवान के नाम पर भगवान के नाम पर मेहनत करता है, और दूसरों की सहायता को सदैव तत्पर रहता है। संसार में ढोंगी साधु का कोई वर्चस्व नहीं।
  18. गुरुनानक देव कहते हैं यदि आप किसी के समक्ष शीश झुकाते हैं परंतु वह झुकाव हृदय से न हो तो उस शीश झुकाने का कोई लाभ नहीं। किसी का सम्मान मन से किया जाना चाहिए।
  19. गुरुनानक देव जी कहते हैं यदि आप बाहर तो दीपक जलाते हैं पर अंतर्मन में अंधेरा हो तो आप प्रकाशमय नहीं हो सकते। अपने अन्तर्मन को प्रकाशित करना अधिक आवश्यक है। गुरुनानक देव जी कहते हैं यदि इस संसार में सेवा के मार्ग पर चला जाए तो ईश्वर की कचहरी में जाकर भी सफलता प्राप्त होती है।
  20. गुरुनानक देव जी ने साढ़े 500 वर्ष पूर्व कहा था कि यदि किसी इंसान को कोई बीमारी होती है, तो वह शारीरिक रूप से ठीक हो जाती है, पर मानसिक रूप से ठीक होने में समय लेती है। आज कोरोना काल मे यही मानवीय स्थिति बनी है।
  21. गुरुनानक देव जी कहते हैं यदि यमदूत को भी चोट करनी है तो ईश्वर का स्मरण करें। गुरुनानक देव जी कहते हैं कि धर्म को पढ़ने का लाभ तभी है यदि धर्म की बातों को अपनाया भी जाए, धर्म को पढ़ने मात्र से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। गुरुनानक देव जी ने कहा है कि न ही बहुत अधिक हो न कम हो, जितने की आवश्यकता हो बस उतना ही पाने की इच्छा रखें।
  22. गुरुनानक देव जी ने कहा है सबके अंदर एक जोत है, एक दूसरे की जोत को समझा जाए। एक दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक रहने का संकल्प लेकर जिया जाए। गुरुनानक देव जी ने कहा है गुलामी में न जीकर स्वाभिमान के साथ जिया जाए तो जीवन जीने का उद्देश्य पूरा हो।

गुरूनानक जी से संबंधित प्रमुख गुरूद्वारे –

ननकाना साहिब

पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित शहर ननकाना साहिब का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा है। इसका पुराना नाम राय भोई दी तलवंडी था। यह लाहौर से 80 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और भारत में गुदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से भी दिखाई देता है। गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान होने के कारण यह विश्व भर के सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु नानक देव के जन्म स्थान पर गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था।

बटाला में श्री कंध साहिब

बटाला स्थित श्री कंध साहिब में गुरु जी की बारात का ठहराव हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार सम्वत 1544 यानी 1487 ईस्वी में गुरु जी की बारात जहां ठहरी थी वह एक कच्चा घर था, जिसकी एक दीवार का हिस्सा आज भी शीशे के फ्रेम में गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में सुरक्षित है। इसके अलावा आज यहां गुरुद्वारा डेरा साहिब है, जहां श्री मूल राज खत्री जी की बेटी सुलक्खनी देवी को गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी से बारात लेकर ब्याहने आए थे।

लुधियाना में गुरुद्वारा गऊ घाट

गुरुनानक देव साहिब 1515 ईस्वी में इस स्थान पर विराजमान हुए थे। उस समय यह सतलुज दरिया के किनारे पर स्थित था। उस समय लुधियाना के नवाब जलाल खां लोधी अपने दरबारियों सहित गुरु जी के शरण में आए व गुरु चरणों में आग्रह किया है हे सच्चे पातशाह, यह शहर सतलुज दरियां किनारे स्थित है, इसके तूफान से शहरवासियों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। आप इस पर कृपा करें। उनके जबाव में गुरु महाराज ने कहा कि आप सभी सच्चे मन से पूजा अर्चना करें।

संगरूर में गुरुद्वारा नानकियाना साहिब

संगरूर से 4 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा नानकियाणा साहिब को गुरु नानक देव और गुरु हरगोबिंद जी की चरण छोह प्राप्त है। सोलहवीं शताब्दी की शुरुआत में श्री गुरु नानक देव जी यहां आए थे। उस समय मंगवाल गांव वर्तमान गुरुद्वारा साहिब के करीब एक तालाब था जहां गुरु जी ने ग्रामीणों को उपदेश दिया था।

फाजिल्का में गुरुद्वारा बड़ तीर्थ

श्री गुरु नानक देव जी उदासियों के दौरान फाजिल्का के गांव हरिपुरा में रुके थे। उनके वहां आगमन के दौरान उनके पैरों की छाप आज भी यहां मौजूद है। जहां गुरुनानक देव जी ठहरे थे, वहां आज एक भव्य गुरुद्वारा बड़ साहिब बना हुआ है। देश के विभाजन से पूर्व बने इस गुरुद्वारे में हर अमावस्या और गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव व अन्य गुरुपर्व श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं।

सुल्तानपुर लोधी में श्री बेर साहिब

गुरु नानक देव जी ने अपने भक्ति काल का सबसे अधिक समय सुल्तानपुर लोधी में बिताया। यहां उनसे संबंधित अनेक गुरुद्वारे सुशोभित हैं। इनमें से प्रमुख हैं श्री बेर साबिह जहां आपका भक्ति स्थल था। गुरु जी ने यहां 14 साल 9 महीने 13 दिन तक भक्ति की। यहीं उनके बैठने के स्थल को भोरा साहिब कहते हैं।

गुरुद्वारा संत घाट

बेर साहिब से तीन किलोमीटर क दूंरी पर है गुरुद्वारा संत घाट। गुरु जी यहां प्रतिदिन स्नान करने आते थे और एक दिन डुबकी लगा कर 72 घंटे के लिए आलोप हो गए। कहा जाता है कि इसी दौरान उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने एक ओंकार के मूल मंत्र का उच्चारण किया।

श्री हटट साहिब

सुल्तानपुर लोढी में अपने ठहरकाव के दौरान नवाब दौलत खान लोधी के मोदी खाने में नौकरी की और लोगों को राशन की बिक्री करते समय इसी स्थान पर उन्होंने तेरा-तेरा का उच्चारण किया था।

श्री कोठड़ी साहिबरू

मोदीखाना के हिसाब में कुछ गड़बड़ी के आरोपों के बाद गुरु साहिब को इसी स्थान पर हिसाब के लिए बुलाया गया, जहां लोगों के लगाए इल्जाम बेबुनियाद साबित हुए और हिसाब कम की जगह ज्यादा निकला था।

श्री अंतरयाम्ता साहिब

यह वह स्थान है जहां मस्जिद में श्री गुरु नानक देव जी ने नवाब दौलत खान व उसके मौलवी को नमाज की अस्लियत बताई थी और उनसे कहा था कि भक्ति में तन के साथ मन का शामिल होना भी जरूरी है।

गुरु का बाग

गुरुनानक जी अपने विवाह के बाद परिवार के साथ इस स्थान पर रहे। इस स्थान पर ही गुुरु साहिब जी के पुत्र बाबा श्री चंद एवं बाबा लख्मी दास का जन्म हुआ। इसी वजह से इस स्थान को गुरु का बाग कहते है।

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