रमा ठाकुर
विश्व के मानचित्र पटल पर विख्यात पहाड़ो की रानी का दिल रिज मैदान के अस्तित्व को कही सरकार का शक्ति पर्दशन भारी न पड़ जाए।
शिमला का रिज मैदान बनेगा राजनीति का अखाड़ा, दांव पर ऐतिहासिक धरोहर और हजारों जिंदगियां l
शिमला का रिज मैदान जो हिमाचल की शान है और जहां पर्यटकों की जान बसती है। अब वो जयराम सरकार के शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बनने जा रहा है। सरकार 27 दिसंबर को 2 साल पूरे होने का जश्न यहीं मनायेगी। जिसमें देश के गृहमंत्री अमित शाह शिरकत करेंगे। ये जानते हुये कि रिज अब बूढ़ा हो चुका है और हजारों लोगों का बोझ अपने कंधों पर उठाने की ताकत नहीं रखता। इसके जिस्म पर पढ़े गढ्डे और दरारें इसकी गवाही साफ दे रहे हैं। लेकिन जश्न पर अमादा सरकार इस लाचार ऐतिहासिक धरोहर की पीड़ा समझने को तैयार नहीं।
सवाल ये है कि जो सरकार शिमला की खूबसूरती में आजतक एक इंच भी इजाफा नहीं कर पायी। उसे शिमला की शान से खेलने का हक किसने दिया। लेकिन सियासत संवेदनाओं से बड़ी हो गई है। इसलिये ये मान के चलो कि ये रैली होकर रहेगी। भले ही रिज मैदान का अस्तित्व और शिमला के निचले इलाकों में रहने वालों की जिंदगी दांव पर लग जाये। ये हम इसलिये कह रहे हैं क्योंकि रिज मैदान के नीचे बने टैंक में हजारों लीटर पानी भरा रहता है। जो कभी भी हादसे का कारण बन भयंकर तबाही मचा सकता है। लेकिन शक्ति प्रदर्शन के लिये सरकार कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। ऐसा नहीं है कि रिज पहली बार राजनीति का अखाड़ा बनने जा रहा है।
ये कई राजनैतिक घटनाओं का साक्षी रहा है।कई हस्तियों ने यहां से हिमाचल के लोगों को संबोधित किया है। जिनमें स्वर्गीय इंदिरा गांधी प्रमुख हैं। उन्होंने 25 जनवरी, 1971 को इसी रिज मैदान से हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी। खुद सीएम जयराम ठाकुर के शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ कई राज्यों के मुख्यमंत्री उस जश्न के गवाह बने थे । उस वक्त भी ये सवाल उठे थे कि क्या रिज एक साथ हजारों लोगों का बोझ उठा सकता है। लेकिन 2 साल में हालात और बदल गये हैं। रिज पहले से ज्यादा कमजोर हो गया है। ऐसे में सवाल यही है कि क्या सरकार हिमाचल की शान के अस्तित्व की कीमत पर भी अपना शक्ति प्रदर्शन करके रहेगी या किसी और विकल्प पर विचार करेगी।