Thursday, March 28, 2024
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Covid-19 : वैश्विक महामारी.. क्या सही हर समय सभी बातों पर विपक्ष द्वारा विरोध

शिमला। विपक्ष का दायित्व है कि वह सत्ता पक्ष की गलत नीतियों का जमकर विरोध करे परन्तु  कोरोना जैसे वैश्विक संकट  के अवसर पर  विपक्ष का भ्रामक (तथ्यों को तरोड़ मरोड़कर) प्रचार इस संकट से निपटने में राष्ट्र के रूप में हमारी एकता पर  ही कुठाराघात सिद्ध होगा।
घटती जीडीपी को लेकर केंद्र सरकार पर तंज कसना आजकल विपक्षी नेताओं प्रिय शगल बना हुआ है।
* जीडीपी क्या है?
* जीडीपी के कम होने से हमारे जीवन में क्या फर्क पड़ रहा है?
* क्या जीडीपी में  यह गिरावट  सिर्फ भारत में है ?
* क्या जीडीपी में यह गिरावट केंद्र सरकार की गलत नीतियों की वजह से आयी ?
और क्या केंद्र सरकार इस गिरावट से निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है ?
आईये इन प्रश्नों में उत्तर ढूढ़ते हैं
जीडीपी का अर्थ अगर बहुत साधारण शब्दों में  कहें तो
देश में एक निश्चित समय के तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं।
जीडीपी घटने का अर्थ यह हुआ की देश में वस्तुओं के और सेवाओं के उत्पादन में कमी आयी है फलस्वरूप देश की आर्थिकी में कमी आएगी और महंगाई बढ़ने का खतरा हो सकता है।
जीडीपी में -23.9 % की गिरावट एक राष्ट्र के लिए बहुत चिंतनीय है।
परन्तु जीडीपी में यह गिरावट केवल भारत में नहीं आयी
इसके लिए बिजनेस टुडे के  कुछ आंकड़े  आपके समक्ष रख रहा हूँ।
इंग्लैंड -21.7%, फ़्रांस 18.9% इटली -17.7%, कैनेडा -13% , अमेरिका -9.9%, जापान,-9% और चीन +3.2%
अर्थात  समस्त विश्व इस दौर से गुजर रहा है। केवल चीन ही एक मात्र देश है  जिसके जीडीपी में बढ़त है इसका सीधा अर्थ कोई भी आर्थिक विशेषज्ञ आसानी से समझ सकता है कि चीन ने अपने षड्यंत्र से समस्त विश्व  को उलझाकर आने यंहा सब सामान्य किया हुआ है।
अब जीडीपी पर तंज कसने से पूर्व विपक्षी ये सोचें कि क्या पिछले  छह महीनों में देश में  सभी  परिस्थियां सामान्य रही है?
कोरोना का यह संकट पहली बार  देश के समक्ष आया था,  देश तो क्या दुनिया भर में इस संकट से निपटने का अनुभव किसी के पास  नहीं था।  इस बीमारी के कारण दुनिया भर में हो रही मौतों से  इतना भय व्याप्त हो गया था कि  शुरूआती दौर में  तो लोग घरों में बंद हो गए।  डर का आलम ये था काम काज छोड़ कर मजदूर पैदल ही अपने कार्यस्थलों से घरों की तरफ चल दिए। सारे काम काज  रूक गए। कल- कारखाने मजदूरों की कमी के कारण  बंद हो गए।  देश भर में उत्पादन लगभग बंद हो गया। हालात ये हो गयी की मात्र छह महीनो में जी एस टी में ढाई लाख रूपये की कमी हो गयी। केंद्र सरकार हो या विभिन्न राज्य सरकारें सबकी प्राथमिकताएं  भूख से लड़ रहे  इन लोगों को  रोटी  उपलब्ध करवाने की हो गयी।
अकेले मोदी सरकार ने तो लगभग एक लाख करोड़ रूपये से अधिक का प्रावधान किसानों , महिलाओं और मजदूरों को मुफ्त में भोजन उपलब्ध करवाने और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने में लगा दिया। राज्य सरकारों ने जो किया वो अलग।  हालत इस कदर ख़राब हो चुके थे कि अगर ये कदम नहीं उठाये होते तो लोग बिमारी से कम और भूख से अधिक मरते। और भूख से पीड़ित व्यक्ति किस हद तक जा सकता है इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है।
समय बीतने पर धीरे धीरे बीमारी से भय में कमी आयी है। लोगों के मनों से इस बीमारी का डर ख़त्म होना शुरू हुआ है। लोगों ने वापिस काम काज पर लौटना आरम्भ तो किया है परंतु तब तक नुक्सान हो चूका था।
कृषि को छोड़कर लगभग सभी क्षेत्रों में उत्पादन कम हुआ। और जब उत्पादन ही कम हो जाये तो जीडीपी कैसे बढ़ेगी?
उत्पदान की दृष्टि से आज धीरे धीरे देश पटरी पर तो लौट रही कल जीडीपी फिर से रफ़्तार पकड़ लेगी परन्तु  मात्र विरोध के लिए विरोध करना इस महामारी से एक होकर लड़ने में सिर्फ बाधा ही  मानी जायेगी। क्योंकि है समझना होगा  लोक डाउन जैसे कठोर कदमो को फिर से लगाते हैं तो  हो सकता है कि बिमारी से तो निपट लें पर भूखमरी से देश में जो अराजकता फैलेगी वह राष्ट्र के रूप में हमारे अस्तित्व को संकट में ले आएगा।
एक तरफ चीन बॉर्डर पर युद्ध के लिए ललकार रहा है।
आर्थिक रूप से तबाह पाकिस्तान भारत को तोड़ने के किसी भी मौके के तलाश में है?
चीन के प्रभाव में आकर पिद्दी सा नेपाल भी आँखें  दिखाने का दुस्साहस दिखा रहा है
और हम हैं कि तुच्छ राजनीती में फंसकर इस संकट की घडी में भी  गलत प्रश्नचिन्ह खड़े  करने में लगे हुए हैं।
समय है कि संकट में मिलकर लड़ें। आदरणीय नरेंद्र मोदी जी का साथ दें।  सरकार  भाजपा या कांग्रेस की नहीं होती है देश के नागरिकों की होती है।
विरोध करने के अभी बहुत मौके मिलेंगे। उनमे एक यह भी है कि इस संकट के समय जिसने भी भ्र्ष्टाचार किया है उसे  समय आने पर उजागर करें।

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