भाषा मानव जाति का एक विशेष व अद्वितीय कौशल है। बच्चों में भाषा का विकास जन्म से पहले ही शुरू हो जाता है। गर्भावस्था के अंत तक ही बच्चा बाहर से आने वाली मां की आवाजों को पहचानने में सक्षम होता है। जन्म से लेकर 5 वर्ष तक बच्चे बहुत तीव्र गति से भाषा का विकास करते हैं।
भाषा विकास के चरण मनुष्यों के बीच सार्वभौमिक है, परंतु जिस उम्र और जिस गति से बच्चा भाषा सीखता है वह बच्चों के बीच भिन्न रहता है। कुछ बच्चों में भाषा का विकास सही समय पर या सही तरह से नहीं होता। मिशिगन स्वास्थ्य विश्वविद्यालय के अनुसार भाषा के विकास में देरी सामान्य विकासात्मक देरी हैं जो 5 से 10 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करती हैं। इसमें से कुछ बच्चे उपचार के बिना ही सामान्य भाषा कौशल विकसित कर लेते हैं लेकिन कुछ बच्चे भाषा व वाणी के विकारों से ग्रसित हो जाते हैं।
अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि भाषा की दुर्बलता के कारण लगभग 90 प्रतिशत बच्चे पढ़ने- लिखने में कठिनाई का सामना करते हैं। बच्चों में भाषा विकारों की प्रारंभिक पहचान अति आवश्यक है। भाषा विकारों के उपचार में देरी से महत्वपूर्ण भाषा विकासात्मक खिड़की गायब हो सकती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार भाषा सीखने की एक महत्वपूर्ण अवधि होती है जिसे critical period of language development कहा जाता है। यह जन्म से 5 वर्ष तक का समय होता है। इसके बाद भाषा विकास सामान्य गति से नहीं होता। उपचार में देरी कर कई बार माता-पिता यह महत्त्वपूर्ण समय गवा देते हैं। इस कारण वह न केवल मानसिक व शारीरिक विकास से पीछे रह जाते हैं बल्कि सामाजिक, शैक्षणिक व व्यवसायिक विकास में भी आगे चलकर प्रभावित होते हैं। अंततः जो कम सफलता से भरा होता है।
भाषा सुनना और सुनाना सबसे अच्छा तरीका है जिससे बच्चे सीखते हैं। इस दौरान हासिल किया गया कौशल बाद में पढ़ने-लिखने, सामाजिक बातचीत, कैरियर विकल्पों, उन्नति और सफलता का आधार बनता है।
अनेकों माता-पिता भाषा की समस्या को लेकर काफी चिंतित रहते हैं लेकिन उन लक्षणों की पहचान करने में चूक जाते हैं जो किसी भाषा के दोष का संकेत देते हैं। सभी माता-पिता को इन संकेतों की पहचान होना अति आवश्यक है।
भाषा विकारों के लक्षण पहचाने
’तीन माह तक – चेहरा देखकर बच्चा न मुस्कुराए।
’6 माह तक – आवाज के ऊपर ध्यान न दें।
’9 माह तक – अलग-अलग प्रकार की आवाज न निकाले।
’ 1साल तक – किसी प्रकार का इशारा न करें।
’ 12 से 18 माह तक – पहला शब्द भी न बोलना, ष्नहींष् को न समझ पाना।
’2 वर्ष तक – सरल निर्देशों का पालन न कर पाना, दो शब्द न जोड़ पाना जैसे – खाना दो।
’3 से 4 साल तक – सरल प्रश्न न समझ पाना। शुरुआती पढ़ने और लिखने के कौशल में परेशानी।
लेखक – श्रीमती दीपिका शर्मा
सलाहकार आॅडियोलाॅजिस्ट और भाषा पैथोलाॅजिस्ट
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