परवीन शर्मा
प्रदेश सरकार के शानदार प्रयासों के चलते धर्मशाला में आयोजित प्रथम इन्वेस्टर मीट में 97,700 करोड़ रुपए के निवेश समझौतों के दावों के बीच , उत्तराखंड सरकार द्वारा लगभग सभी अखबारों में प्रकाशित पूरे पेज के एक विज्ञापन ने शायद मेरी तरह कई अन्य लोगों को भी चौंकाया होगा जिसमें राज्य की अन्य उपलब्धियों के साथ साथ देहरादून में आयोजित इसी तरह के एक इन्वेस्टर्स समिट में 1,24,000 करोड़ रुपए के निवेश समझौतों का दावा उत्तराखंड सरकार ने किया था।
उत्तरायणि के अवसर पर उत्तराखंड के लोगों द्वारा दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में मुझे अतिथि के रूप में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। ऐसे अवसरों पर यह स्वाभाविक ही होता कि वक्ता अपने राज्य की उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर व्यक्त करते हैं। भाषणों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के समायोजन के बीच जब एक वक्ता ने अपने संबोधन में हिमाचल के साथ तुलना करते हुए उत्तराखंड को विकासीय ढांचे को हिमाचल से श्रेष्ठ बताया तो मेरे लिए यह आश्चर्यजनक था। क्योंकि अब तक मेरा ये मानना था कि सभी हिमालयी राज्यों की तुलना में हम विकास के मामले में अन्य राज्यों से आगे है।
लगभग समान क्षेत्रफल, एक जैसी भागौलिक परिस्थितियां व समान संस्कृति उत्तराखंड को हिमाचल का प्रतिरूप बनाते हैं। राज्य के रूप हिमाचल प्रदेश 72 वर्ष पूरे कर चुका है जबकि देश के 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड को बने हुए मात्र 19 वर्ष ही हुए हैं ऐसे में दोनों राज्यों में तुलना न्यायपूर्ण तो नहीं कही जा सकती है पर विकास के दावों की सच्चाई को कसौटी पर परखना भी आवश्यक है। वर्ष 2000 में गढ़वाल और कुमाऊं के लोगों को जब उत्तरांचल के रूप में अपना राज्य मिला तो विरासत में 3,630 करोड़ रुपए का कर्ज भी मिला। 40% गांव सड़क सुविधा से वंचित थे और लगभग यही हाल विद्युत और पेयजल का भी था। जबकि हिमाचल वर्ष 1988 में 100% विद्युतीकरण और वर्ष 1995 में सभी गांवों को पेयजल योजना से जोड़ने की उपलब्धि हासिल कर चुका था।
हिमाचल की तुलना में इस समय उत्तराखंड के पिछड़ेपन को रिजर्व बैंक के इन आंकड़ों से आसानी से समझा जा सकता है वर्ष 2001 में जब हिमाचल में प्रति व्यक्ति आय 22,543 रुपए थी तब उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय मात्र 14,932 रुपए थी। इसी वर्ष हिमाचल प्रदेश की 3,046 करोड़ रुपए की राजस्व प्राप्तियों के मुकाबले उत्तराखंड की राजस्व प्राप्तियां 2,730 करोड़ रुपए थी। वर्ष 2002 में उत्तराखंड की वार्षिक योजना जहां 1,443 करोड़ रुपए थी वहीं हिमाचल की वार्षिक योजना 2,051 करोड़ रुपए की थी। आर्थिक आंकड़ों में यह अंतर हिमाचल कि श्रेष्ठता को साबित करते थे।
सड़क , शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार में विकास के मानक स्थापित करने और अन्य विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणीय रहने के लिए मिले 80 से अधिक पुरस्कार इतिहास का हिस्सा बन चुके है अब तो एक दो क्षेत्रों में दूसरे तीसरे स्थान में आने पर भी हम गर्व से फूले नहीं समाते हैं । यह आश्चर्यजनक पर सत्य है कि 18 वर्षों की छोटी सी अवधि में उत्तराखंड ने हमें विकास के लगभग सभी सूचकांकों में पीछे छोड़ कर सड़क , शिक्षा, ऊर्जा , कृषि व पर्यटन जैसे कई क्षेत्रों में बढ़त बना ली है। यह परिवर्तन रातों रात नहीं हुआ बल्कि इसके लिए वहां के नेतृत्व , नौकरशाही और जनता ने कड़ी मेहनत की है। विकास की दृष्टि से उत्तराखंड ने हिमाचल को अपना आदर्श अवश्य बनाया पर नीतियां और कार्यक्रम अपनी जरूरतों के हिसाब से बनाए ।
उत्तराखंड ने आधारभूत संरचनाओं में निवेश के साथ साथ उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग प्रयोग किया। हिमाचल की तुलना में उत्तराखंड का कम क्षेत्रफल और अधिक जनसंख्या विकास की राह में बड़ी बाधा है पर हिमाचल से आगे बढ़ने की ललक इतनी अधिक थी कि उत्तराखंड का सांख्यिकी विभाग हर वर्ष हिमाचल के साथ प्रत्येक क्षेत्र में एक तुलनात्मक रिपोर्ट प्रकाशित करता है। और इसी आधार पर अपने कार्यक्रम बनाता है। शायद यही उनके आगे बढ़ने का मुख्य कारण भी है। हिमाचल की तरह उत्तराखंड में भी ‘ एक बार तू – एक बार मैं ‘ की तर्ज पर सत्ता परिवर्तन होता रहा है पर इस परिवर्तन ने भी कभी विकास की गति को विराम नहीं लगने दिया।
वर्तमान बजट के आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण हिमाचल का उत्तराखंड से आर्थिक रूप में पिछड़ने की गवाही देता है उत्तराखंड ने वर्ष 2020-21 के लिए 53,000 करोड़ का बजट आकलन प्रस्तुत किया है जिसमें 52,423 करोड़ की राजस्व प्राप्तियां दर्शायी हैं वहीं हिमाचल का बजट 49,000 करोड़ रुपए का है जिसमे राजस्व प्राप्तियां मात्र 38,439 करोड़ रुपए है इस से भी अधिक आश्चर्य कि बात यह है कि उत्तराखंड ने 49.40 करोड़ का राजस्व आधिक्य दर्शाया है जबकि हिमाचल ने अपना राजस्व घाटा 684 करोड़ रुपए का दिखाया है। राजस्व आधिक्य के बजट का कारनामा हिमाचल भी वर्ष 2010-11 में दिखा चुका है। उत्तराखंड का सकल घरेलू उत्पाद 2,63,233 करोड़ पर पहुंच गया है जबकि हिमाचल का सकल घरेलू उत्पाद 1,68,972 करोड़ रुपए ही है आज हिमाचल की 1,95,00 की प्रति व्यक्ति आय की मुकाबले उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय दो लाख रुपए हो चुकी है।
इन सभी आंकड़ों का विश्लेषण करें तो कुछ यक्ष प्रश्न उभर कर सामने आते हैं आखिर क्या कारण रहे कि जिन क्षेत्रों में हम विकास के मानक स्थापित कर रहे थे आज उन्हीं क्षेत्रों में हम अपने पड़ोसी राज्य से पिछड़ रहे हैं ? क्या हिमाचल के पास समुचित संसाधन नहीं है क्या हिमाचल को सक्षम नेतृत्व नहीं मिल पा रहा है ? क्या यहां की नौकरशाही काबिल नहीं है ? अथवा राज्य के लोग अपनी वर्तमान स्थिति संतुष्ट हैं और आगे बढ़ने की उनमें कोई जिजीविषा ही नहीं बची है ? अगर हिमाचल आगे बढ़ना है तो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इन प्रश्नों के उत्तर ढूंडने होंगे। और सत्ता परिवर्तन के बजाय व्यवस्था परिवर्तन पर बल देना होगा।
प्रवीण कुमार शर्मा
सत्तत विकास चिंतक