Sunday, September 8, 2024
HomeshimlaMahashivratri : शिवरात्रि का महत्व व विधि -विधान

Mahashivratri : शिवरात्रि का महत्व व विधि -विधान

शिमला. हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं।
महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।
पंडित लायक राम शर्मा ने बताया कि महाशिवरात्रि का व्रत मीन राशि में राहु और बुध यह दो ग्रहों एक साथ रहेंगें और चार ग्रहों का एक साथ होना संसार के लिए कल्याणकारी होगा। सूर्य, शनि, चंद्रमा, शुक्र कुम्भ राशि में विराजमान रहेंगें और माना जाता है कि शुक्र, सूर्य का एक साथ होने से सुख, समृद्धि के साथ अरोग्ययता की प्राप्ति होती है। स… क्षेत्रों में विकास होता है। वहीं शुक्र ऐश्वर्य, शांति सौंदर्य और सांसारिक भोगों को प्रदान करते हैं तो कुम्भ राशि में मन का कारक चन्द्रमा जो भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं ,चंद्रमा शांति शीलता, सुख, और अरोग्यता प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि प्रमुख त्योहार में से एक है। यह भगवान शिव के पूजन का सबसे बड़ा पर्व भी है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। भगवान शिव जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं। उतनी ही जल्दी नाराज भी हो जाते हैं। इसलिए शिवरात्रि के दिन और पूजा में कुछ बातों ध्यान रखना जरूरी है। पूजन करते समय मन को एकाग्र कर चित्त को शान्त कर के पूजन आरम्भ करें।

Most Popular