बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को ‘आधुनिक भारत का मंदिर’ का दर्जा देने वाले प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि देश के लिए समृद्धता की इबारत लिखने वाली भाखड़ा – नंगल परियोजना जिस भूमि पर बनी हुई है उस भूमि से विस्थापित लोगों को पचास वर्षों के पश्चात भी न्याय के लिए दर दर भटकना पड़ेगा।
राज्य के रूप में हिमाचल अपने साथ हुए अन्याय को चुपचाप सहन कर रहा है। अन्याय भी ऐसा कि बीबीएमबी की समस्त परियोजनाओं का 97 प्रतिशत हिस्सा हिमाचल की भूमि पर स्थित है और उत्पादित विद्युत में से प्रदेश को केवल 5.07 % पर ही संतोष करना पड़ रहा है। हिमाचल को बीबीएमबी के भाखड़ा पावर प्रोजेक्ट में से 6.10% , डेहर पॉवर हाउस से 5.75% पौंग पावर हाउस से 2.98% बिजली मिल रही है। यह स्थिति भी सितम्बर 2011 में तब बदली जब हिमाचल प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने हिस्से को लेकर किये गए केस में विजय प्राप्त की । इस से पूर्व हिमाचल को इस परियोजना में 2% से अधिक बिजली नहीं मिलती थी।
स्वतंत्रता के पश्चात सिंचाई व विद्युत की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सतलुज नदी पर 1948 में भाखड़ा –नंगल बांध परियोजना शुरू की गयी। भाखड़ा बांध, गंगुवाल व कोटला इस परियोजना का हिस्सा हैं। ब्यास नदी का दोहन करने के लिए ‘ब्यास परियोजना शुरु की गयी। ब्यास परियोजना , यूनिट-I ( बीएसएल परियोजना ) में पंडोह डैम, बग्गी व डेहर पावर हाउस तथा यूनिट-II, ब्यास बांध परियोजना में पौंग डैम सम्मिलित किये गए। 1 नवम्वर, 1966 को तत्कालीन पंजाब राज्य के पुनर्गठन के पश्चात हिमाचल की भूमि में स्थित होने के बावजूद भाखड़ा बांध का प्रशासन, अनुरक्षण एवं परिचालन भाखड़ा प्रबन्ध बोर्ड को सौंप दिया गया। ब्यास परियोजना का कार्य पूर्ण होने पर भारत सरकार ने हिमाचल प्रदेश के साथ एक बार फिर से अन्याय करते हुए ब्यास निर्माण बोर्ड को भाखड़ा ब्यास प्रबन्ध बोर्ड में स्थानांतरित कर दिया और परिणामस्वरूप बीबीएमबी का जन्म हुआ।
वर्ष 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार जी के प्रयत्नों से हिमाचल में स्थित विद्युत परियोजनाओं में प्रदेश को 12% रॉयल्टी देने के लिए केंद्र सरकार सैद्धान्तिक रूप से सहमत हो गयी। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के अनुसार अविभाजित पंजाब में हिमाचल प्रदेश की 7.19 प्रतिशत हिस्सेदारी बनती है। हिस्सेदारी और रायल्टी को आधार बनाते हुए हुए वीरभद्र सरकार ने वर्ष 1996 में बीबीएमबी की परियोजनाओं में 7.19% हिस्सेदारी और 12% रायल्टी का दावा सर्वोच्च न्यायालय में कर दिया। लंबे समय तक प्रदेश सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण यह मामला तारिखों के जाल में फंसा रहा। वर्ष 2009 में मुख्यमंत्री प्रो० प्रेम कुमार धूमल ने इस मामले को प्रधान सचिव (विद्युत) दीपक शानन को इस मामले को परिणाम तक पहुचाने की जिम्मेदारी सौंपी। संकलिप्त नेतृत्व, प्रतिबद्ध नौकरशाही और वरिष्ठ वकीलों की जौरदार पैरवी के कारण 27 सितम्बर 2011 को 7.19 % हिस्सेदारी और 4249 करोड़ रूपये के मुवावजे के फैसले के साथ हिमाचल आंशिक रूप से इस को केस जीतने में तो सफल हो गया पर दुर्भाग्यवश 12% रायल्टी के दावे को नकार दिया गया।
फैसले के प्रति पंजाब व हरियाणा की ना नुकुर और मुआवजे के सही निर्धारण के लिए बीबीएमबी की कुछ आपत्तियों के कारण यह मामला पुनः न्यायालय में लंबित है हालाँकि पंजाब आगामी 15 वर्षों में क्रमबद्ध रूप मुआवजे की रकम को विद्युत आवंटन के रूप में लौटने के लिए तैयार है गत 28 जनवरी को हुई अंतिम बहस के पश्चात् क्या निर्णय होता है यह भविष्य के गर्भ में है। तीन वर्ष पूर्व बीबीएमबी के अध्यक्ष पद पर पहली बार हिमाचल से सम्बंधित इंजिनियर डी के शर्मा की नियुक्ति हुयी थी । उनके प्रयत्नों से चालीस वर्षों से लंबित 42 मेगावाट के बग्गी प्रोजेक्ट का कार्य शुरू हो रहा है। इस प्रोजेक्ट से
हमें 18 % बिजली मुफ्त मिलेगी। भाखड़ा बांध से हिमाचल को 10 मेगावाट बिजली ₹ 3.53 प्रति यूनिट के उत्पादन मूल्य पर मिलती थी, शर्मा के प्रयासों से यह विद्युत अब 88 पैसे प्रति यूनिट से मिलना शुरू हुई है जिससे प्रति वर्ष लगभग 12 करोड़ रू का लाभ हो रहा है। हिमाचल की हिस्से की बिजली को डेहर से लिए जाने विकल्प के कारण प्रतिवर्ष 6-7 करोड़ रू की बचत, भाखड़ा व पोंग डैम से पानी उठाये जाने की छूट, पर्यटन के लिए डैम का प्रयोग की एनओसी जैसे अनेकों कार्यों से डीके शर्मा ने अपने कार्यकाल की सार्थकता तो सिद्ध कर दी फिर भी यह प्रदेश के साथ हुए अन्याय की क्षतिपूर्ति कदापि नहीं कह जायेंगे।
हिमाचल में स्थित होने पर भी इस परियोजना को क्यों पंजाब को सौंपा गया यह समझ से परे है। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार अविभाजित पंजाब में यदि प्रदेश की हिस्सेदारी 7.19% बनती है तो जोगिन्दरनगर स्थित 110 मेगावाट की शानन विद्युत परियोजना में आज तक हिमाचल को उसका हिस्सा क्यों नहीं दिया गया? बीबीएमबी की विद्युत उत्पादन क्षमता 2918.73 मेगावाट है। यूँ तो समस्त परियोजना पर ही हिमाचल का हक़ बनता था पर वर्तमान विद्युत नीति के अनुसार भी देखें तो रॉयल्टी के रूप में 350 मेगावाट, हिस्सेदारी के तहत 162 मेगावाट एवं स्थानीय हिस्सेसदारी के रूप में 29 मेगावाट , कुल मिलाकर 542 मेगावाट बिजली मिलनी चाहिए पर हमें केवल 162 मेगावाट बिजली ही मिल रही है। बीबीएमबी की नौकरियों में भी 7.19% हिस्सेदारी हिमाचल की बनती है पर हमने कभी दावा ही नहीं किया। आवश्यकता अन्याय के खिलाफ सामूहिक रूप से लड़ने की है।
प्रवीण कुमार शर्मा
सत्तत विकास चिंतक