सोलन: शूलिनी विश्वविद्यालय में बेलेट्रिस्टिक लिटरेचर सोसाइटी ने शशि देशपांडे की तीन लघु कथाओं में महिला आत्म-अभिकथन में भिन्नता पर एक सत्र आयोजित किया। श्रीमती देशपांडे भारत की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार और लघु कथाकार हैं। उन्हें 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2009 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनकी रचनाओं में भारतीय मध्यम वर्ग की दुर्दशा, महिलाओं की भूमिका और महिलाओं के आत्म-पुष्टि जैसे कई विषयों का पता चलता है। सत्र की अध्यक्ष सोनिका ठाकुर पीएच.डी. स्कॉलर शूलिनी विश्वविद्यालय से थी और सत्र का संचालन डॉ. पूर्णिमा बाली ने किया। सोनिका ठाकुर ने लेखक के संक्षिप्त परिचय, उनके कार्यों और उनकी उपलब्धियों के साथ प्रस्तुति की शुरुआत की। श्रीमति ठाकुर ने “इट्स द नाइटिंगेल, ए वॉल इज सेफ़र एंड ए लिबरेटेड वुमन” शीर्षक वाली तीन लघु कहानियों का चयन किया, यह दिखाने के लिए कि महिलाएं अपने सामने आने वाली परिस्थितियों का जवाब कैसे देती हैं, चाहे वह समाज में हो या परिवार में। उन्होंने ने तीनों कहानियों के तीन पात्रों की सावधानीपूर्वक तुलना की और सुझाव दिया कि देशपांडे के कार्यों में महिला पात्र अलग और जटिल हैं। शूलिनी विश्वविद्यालय के प्रो. तेज नाथ धर ने इस प्रश्न को प्रस्तुत करते हुए चर्चा की शुरुआत की कि क्या महिलाएं अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को निष्पक्ष रूप से अलग कर सकती हैं। सोनिका ठाकुर, डॉ. नवरीत साही, डॉ. सम्राट शर्मा और डॉ. पूर्णिमा बाली ने इस बारे में बात की कि कैसे महिलाओं को अक्सर उस स्थिति में रखा जाता है जहां उनके द्वारा किए गए विकल्पों के लिए उन्हें लगातार आंका जाता है। पैनलिस्ट्स द्वारा समाज में पुरुषों की भूमिका और कैसे न केवल महिलाओं बल्कि पुरुषों से समाज में कुछ कार्यों को करने की अपेक्षा की जाती है इस बात पर भी चर्चा की गयी । पैनल ने शशि देशपांडे के कार्यों में पितृसत्ता, प्रतीकों और भारतीय मध्यवर्गीय महिलाओं के प्रतिनिधित्व की भूमिका पर भी चर्चा की। फैकल्टी ऑफ लिबरल आर्ट्स की डीन प्रो मंजू जैदका ने कहा कि विभाग आने वाले हफ्तों में भी इस तरह की चर्चा आयोजित करेगा।
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