शिमला: संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने वर्ष 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष” के रूप में घोषित किया है। मोटा अनाज वर्ष घोषित करने का संकल्प भारत द्वारा प्रायोजित किया गया था। बाद में इस संकल्प को सर्वसम्मति से और 193 सदस्यों में से 70 से अधिक देशों के समर्थन से अपनाया गया। देश भर में 200 से अधिक डॉक्टरों के साथ 150 से अधिक शुद्धि वैलनेस क्लीनिक्स की श्रृंखला भी मोटे अनाज को प्रतिदिन के आहार में शामिल करने के लिए निरंतर प्रयासरत रही है। शुद्धि वैलनेस और हिम्स (हॉस्पिटल एंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड मेडिकल साइंसेज) के संस्थापक, आयुर्वेद एवं मेडिटेशन गुरु, आचार्य मनीष जी ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया है और हम भी बड़े पैमाने पर मोटे अनाज को प्रमोट कर रहे हैं। इसमें पैक किए हुए मिलेट्स के विभिन्न रूपों का अनावरण, मिलेट्स का पूरक आहार के रूप में प्रयोग जो प्राकृतिक तरीके से बीमारियों को ठीक करने में मदद करता है, और हाल ही में हॉस्पिटल एंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड मेडिकल साइंसेज और हिम्स नेचर क्योर सेंटर्स, जहां मोटे अनाजों से बना भोजन ही दिया जाता है और लोगों को रोजमर्रा जीवन मे इसे शामिल करने के लिए शिक्षित किया जाता है, में आयोजित बाजरा महोत्सव आदि शामिल हैं।’
आचार्य मनीष जी के अनुसार, बाजरा जैसे मोटे अनाज न केवल स्वस्थ रहने के लिए बल्कि कई बीमारियों से बचने के लिए भी गेहूं और चावल से ज्यादा लाभकारी होते हैं। मिलेट्स में कंगनी, हरी कंगनी, सावां, कोदो, कुटकी, बाजरा, रागी, चना, ज्वार और मक्का शामिल हैं। मोटे अनाज शरीर को स्वस्थ और रोग मुक्त रख सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, प्रोटीन एवं खनिज आदि से भरपूर होते हैं। दुर्भाग्य से आजकल जो गेहूं खाया जा रहा है, वह जेनेटिकली मॉडिफाइड है।