Thursday, April 18, 2024
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संकट में पहाड़ ..विषय पर मीडिया वर्कशॉप आयोजित

 विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष में बुधवार को प्रेस क्लब शिमला और हिमधरा पर्यावरण समूह ने मिल कर राजधानी में मीडिया वर्कशॉप का आयोजन कियाl वर्कशॉप में हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरणीय संकट पर गहराई में चर्चा हुई। जिसमें हिमधरा समूह की मानसी आशर और सुमित महर के साथ वरिष्ठ पत्रकार पी सी लोह्मी ने मुद्दे पर अपने विचार रखे l

आम तौर पर लोग सोचते हैं की पर्यावरण की समस्या केवल प्रदूषण है और पहाड़ों में पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएं शहरों के मुकाबले कम हैंl लेकिन असलियत इसके ठीक विपरीत हैl वायु प्रदूषण तो केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा हैl जब जल,जंगल, जमीन, जानवर और जन – इनके बीच का रिश्ता और संतुलन बिगड़ जाता है तो हम इसको पर्यावरण संकट मान सकते हैं – और इससे न केवल प्रकृति बल्कि मानव जीवन, समाज, अर्थव्यवस्था और यहाँ तक की हमारे मनोविज्ञान पर भी असर पड़ता हैl साथ ही जलवायु परिवर्तन जैसी भयंकर समस्या के संकेत हिमालयी क्षेत्र जैसे संवेदनशील स्थानों में और तेज़ी से प्रकट हो रहे हैं जिनको हम अब अनदेखा नहीं कर सकते.“पिछले कुछ वर्षों में काफी अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि हिमालय, जो दुनिया का सबसे बड़ा जल संग्रह है जिसपर 8 देशों के सौ करोड़ से अधिक लोग निर्भर हैं, के हिमखंड तेज़ी से पिघल रहें हैं, नदियाँ और भूजल के स्रोत सूख रहें हैं, जंगल खत्तम हो रहें हैं और यहाँ बाढ़ और भूस्खलन जैसी दुर्घटनाएं आम हो गयी हैl हालांकि जलवायु परिवर्तन का स्वरूप और इसके कारण वैश्विक हैं पर इसका प्रभाव स्थानीय है”, हिमधरा समूह की मानसी आशर ने बताया“साथ ही स्थानीय स्तर पर हो रही विकास की गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभावों को भी हम नज़रंदाज़ नहीं कर सकते.अंधाधुंध निर्माण कार्य चाहे जलविद्युत परियोजनाएं हों या फोरलेन सड़क या खदान और औद्योगिकरण या अनियंत्रित पर्यटन – इन सब गतिविधियों के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन होने से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहें हैं”. इन संसाधनों पर निर्भर किसान और स्थानीय समुदाय भी इन बदलावों से प्रभावित हो रहें हैं. हिमधरा समूह के सुमित महार ने किन्नौर के लिप्पा गाँव का उदाहरण देते हुए बताया, “यहाँ का जन जातीय समाज अपने अस्तित्व और आजीविका को बचाने के लिए पिछले दस वर्षों से काशांग बिजली परियोजना  के खिलाफ संघर्ष कर रहा है.लेकिन सरकार स्थानीय लोगों के वन भूमि पर कानूनी अधिकार होने के बावजूद इस परियोजना को बनाने पर तुली हुई है”. हिमधरा समूह के सदस्यों ने बताया कि पूरे विश्व में यह चर्चा हो रही है की यदि वनों का संरक्षण करना है तो स्थानीय समुदायों को इन संसाधनों पर अधिकार देने होंगे. पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों की भागीदारी अनिवार्य है. साथ ही कोई भी विकास की परियोजना और नीति बनाने में भी जनता और स्वयं सेवी समाज का पक्ष होना चाहिए. दूसरी तरफ केवल आर्थिक फायदा न देखते हुए सरकारों को बहु आयामी सोच के साथ आजीविका के साधन विकसित करने होंगे ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे. पर्यावरण संरक्षण के कानूनों को कड़ा करने के बजाए सरकारें इन पर ढीली पड रही हैं – और प्रशासन केवल न्यायालय पर पूरी तरह निर्भर है – यह भी गलत है. शहरी कूड़े के प्रबंधन को ले कर हिमाचल में यह देखा गया है कि प्रशासन की भूमिका उदासीनतापुर्वक रही है. इसके चलते पूरे राज्य में आज तक कचरे के प्रबंधन पर ठोस नीति नहीं बन पायी है.पी सी लोह्मी ने इस बात पर ध्यान आकर्षण किया कि किस तरह से हमारी पुरानी उपभोग की पद्धत्तियाँ ख़त्म की जा रही हैं – खान पान से ले कर, हमारे पहनावे और रहन सहन के तरीके बाजारीकरण ने बदल दिए हैं और हमारी विकास की परिभाषा का एक ही आधार है जो आर्थिक है. उन्होंने मीडिया की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि समाज में बदलाव सरकारें नहीं ला सकती बल्कि मीडिया और आज समाज के लोग मिल कर ला सकते हैं. लोहमी ने कहा की आज का विकास हमारे राजनेताओं का अजेंडा है, आम लोगों का नहीं और आम लोगों को अपने असली मुद्दों को राजनैतिक मुद्दे बनाने का काम करना होगा और इसमें मीडिया आम जनता की बात उठाने में सक्रिय बन भूमिका निभा सकता है.

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