Thursday, April 25, 2024
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बौद्धिक संपदा का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान


बौद्धिक संपदा अधिकार बारे एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के छात्रों को पढ़ाया नवाचार आधारित अनुसंधान का पाठ
शिमला
, आज के प्रतिस्पर्धा के माहौल में हर व्यवसाय के लिए नवाचार मुख्य आधार है जो आपकी बौद्धिक संपदा को समाज व राष्ट्र के विकास की ओर ले जाता है। इसी संबंध में सोमवार को स्थानीय एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ साइंस विभाग की ओर से डॉ. प्राची वैद और डॉ. प्रेम सिंह की अगुवाई में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया जिसका बाज़ार की ओर बौद्धिकता और विज्ञान में बौद्धिक संपदा अधिकार के पहलू विषय रहा। वेबिनार में जाने-माने बौद्धिक संपदा अधिकार विशेषज्ञ व प्रबंधक सर्वदीप संधु मुख्य वक्ता व स्रोत पर्सन रहे। कार्यक्रम की शुरुआत एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान के स्वागत भाषण से हुई। कुलपति रमेश चौहान ने नवाचारों व अनुसंधान संबंधी वेबिनार व कार्यशालाओं को आयोजन करवाना छात्र हित में कारगरसिद्ध होना बताया ताकि युवा अपने नवाचारों व अनुसंधान कार्यों से देश की अर्थव्यवस्था के विकास में अपना योगदान दे सकें। कुलपति ने सभी वेबिनार में उपस्थित सभी छात्रों, प्राध्यापकों सहित मुख्य वक़्ता का धन्यवाद करते हुए कहा कि बौद्धिक संपदा और हर व्यवसाय के लिए नवाचार व अनुसंधान देश व समाज को विकास की ओर ले जाता है । कुलपति ने कहा कि बौद्धिक संम्पदा अधिकार प्रौदयोगिकी तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह हर व्यवसाय, हर संस्थान, हर नवाचारी व अनुसंधान कर्ता चाहे वे छात्र हों या शिक्षक सभी के लिए मूल्यवान है। उन्होंने बौद्धिक संम्पदा अधिकार पर बोलते हुए कहा कि शिक्षक छात्रों को नवाचारों के प्रति प्रेरित व जागरूक करें कि किस तरह नवाचारों, खोजों से दीर्घकालिक सफलता हासिल की जा सकती है जिससे राष्ट की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में बल मिलता है। वेबिनार में मुख्य वक्ता व विषय विशेषज्ञ रहे सर्वदीप संधू ने बाज़ार और बौद्धिक संपदा अधिकारों, प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि बौद्धिक संपदा व नवाचारों से कैसे बाज़ार और अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है लेकिन इसके लिए नए विचार, अनुसंधान तलाशने होंगें और उनका संचरण होना भी उतना ही जरूरी है । संधू ने कहा कि भारत जैसे देश में नवाचारों और नए विचारों को पहचान नहीं मिलती न ही श्रेष्ठ नवाचारों को प्लेटफार्म मिलता है और यही वज़ह है कि विकसित देश भारत के नवाचारों को चालाकी से बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों के तहत रजिस्टर्ड करवा देते हैं और पेटेंट भी करवा देते हैं। संधू ने छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है तो नवाचारों के साथ बौद्धिक संपदा अधिकारों के भिन्न-भिन्न पहलुओं को जानना भी उतना ही खास है। संधू ने कहा कि स्वदेशी उत्पादों से लेकर विज्ञान, टेक्नोलॉजी और हर व्यवसाय में नवाचार और नए अनुसंधान मानवीय सेवाओं सहित राष्ट्र-विकास में बड़ी रकम का निवेश करते हैं जिससे अर्थव्यवस्था मज़बूत होती है और अनुसंधान कर्ता भी आत्मनिर्भर होता है। उन्होंने कहा कि बेशक विकाशशील देशों में नवाचारों व अनुसंधान कार्यों के लिए धन की कमी मुख्य समस्या रहती है परंतु इस दिशा में सरकारों और कई सृजन संस्थानों की तरफ से मदद की जाती है जिसका नवाचारी व व्यवसायी लोगोँ, सृजनकर्ताओं, अनुसंधान कर्ताओं , विद्यार्थियों व शिक्षकों लाभ उठाना चाहिए। संधू ने कहा कि नवाचारों के लिए बाज़ारी प्रतिस्पर्धा की भी जरूरत नहीं है परंतु नवाचार बेहतर होने चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी के नवाचार, विचार और अनुसंधान अपनी-अपनी फील्ड में बेहतर हो सकते हैं लेकिन उन्हें बाज़ार व ग्राहक नहीं मिल पाता है जिसके पीछे नवाचारों को सुरक्षित, गारंटीकृत, कानूनी प्लेटफॉर्म, संचरण करने वाला प्लेटफॉर्म और टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल उपयोग करने वाला फॉर्मूला नहीं मिलता है जैसे कि पश्चिमी देश अपने नवाचारों और उत्पादों का शोर मचाकर अपने को बेहतर मानते हैं।

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