शिमला। हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ मानी जाने वाली सेब बागवानी इन दिनों मौसम बदलाव और बदलते बाजार व्यवहार जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है। परंतु इन चुनौतियों के बीच एक नई तकनीक—उच्च घनत्व बागवानी—बागवानों के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर उभरी है। यह तकनीक न केवल उत्पादन को बढ़ा रही है, बल्कि कम समय में ज्यादा मुनाफा देने की क्षमता भी रखती है।
70 वर्षों से हिमाचल की अर्थव्यवस्था में सेब का अहम योगदान
हिमाचल की पारिस्थितिकीय जलवायु लंबे समय से सेब की खेती के लिए अनुकूल रही है। बीते 70–80 वर्षों में यहां की सेब बागवानी ने एक व्यापक उद्योग का रूप ले लिया है। यह क्षेत्र आज राज्य की जीडीपी में लगभग 5,000 करोड़ रुपये का योगदान देता है और 5 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है।
राज्य में सेब की शुरुआत कोटगढ़ क्षेत्र में अमेरिकी नागरिक सैमुअल इवान स्टोक्स द्वारा रॉयल डिलिशियस किस्म की खेती से हुई थी, जिसने आज लगभग 90 प्रतिशत बागवानी क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया है।
रॉयल सेब की चुनौतियां बढ़ीं, उत्पादन पर असर
रॉयल सेब की लोकप्रियता आज भी बरकरार है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, चिलिंग आर्स की कमी, अत्यधिक रसायन उपयोग और लागत बढ़ने के कारण अब इसकी गुणवत्ता और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
उच्च घनत्व: कम भूमि, अधिक पौधे, जल्दी लाभ
उच्च घनत्व सेब बागवानी का अर्थ है कम स्थान में अधिक पौधे लगाना। एक बीघा में पारंपरिक तौर पर 20–30 पौधे लगते थे, वहीं उच्च घनत्व तकनीक से 600 से 1000 पौधे लगाए जा सकते हैं। इन किस्मों में रेड चीफ, स्कारलेट, एड्मस और गाला वैरायटी प्रमुख हैं, जो कम चिलिंग आर्स में भी अच्छे फल दे रही हैं।
जुब्बल के बागवान लोकिन्दर चौहान, कोटखाई के प्रेम चौहान और रोहड़ू के अमन शर्मा जैसे प्रगतिशील किसान इसकी सफलता की मिसाल बन चुके हैं। उन्होंने इस तकनीक को अपनाकर कम समय में अच्छी कमाई की है और दूसरों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं।
सरकार की योजनाएं और तकनीकी सहयोग
वर्तमान राज्य सरकार भी इस दिशा में गंभीर प्रयास कर रही है। बागवानी विभाग की ओर से तकनीकी प्रशिक्षण, सब्सिडी, और बैंक ऋण योजनाएं जैसे हिमाचल राज्य सहकारी बैंक से 9 लाख रुपये तक का ऋण उपलब्ध करवाया जा रहा है, जिसकी अदायगी पौधे के फल देने के बाद की जाती है।
विशेषज्ञों की राय: समय की जरूरत है तकनीकी बदलाव
उद्यान विभाग शिमला के विशेषज्ञ डॉ. कुशाल सिंह मेहता का मानना है कि हिमाचल की सेब बागवानी का भविष्य अब उच्च घनत्व तकनीक पर ही निर्भर है। उन्होंने बताया कि बदलते मौसम में पारंपरिक किस्में टिक नहीं पा रहीं, इसलिए नई प्रजातियां और वैज्ञानिक तकनीकें ही सेब उद्योग को आगे ले जा सकती हैं।