Friday, September 13, 2024
Homeशिमलावाद- संवाद से महत्वपूर्ण है सुसंवाद - जे .नंद कुमार

वाद- संवाद से महत्वपूर्ण है सुसंवाद – जे .नंद कुमार

प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे .नंद कुमार जी ने कहा है कि वाद- संवाद होना चाहिए लेकिन सुसंवाद अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा की संगोष्ठियों में बुद्धिजीवी जन संवाद करते हैं और ऐसी ही पद्धति हमारी लोक परंपराओं में है। पंचनंद शोध संस्थान,अध्ययन केन्द्र शिमला, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय व भाषा एवं संस्कृति अकादमी हिमाचल प्रदेश के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘लोक परंपराओं में भारत बोध’ संगोष्ठी में मुख्या वक्त के रूप में उपस्थित जे नन्द कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि हमें भारतीयता के बारे में कुछ भी जानने कि उत्सुकता हो तो वह वनवासियों के बीच रह कर पर्याप्त की जा सकती है।उन्होंने कहा कि भारत सर्व श्रेष्ठ देश ‘ सोने कि चिड़िया’ के नाम से जाना जाता था यह भी हमारी लोक परंपराओं व गाथाओं में आज भी जिंदा है। पंचनंद शोध संस्थान जैसे संस्थान इस दिशा में समाज को सुसंवादित करने में सदा प्रयत्नशील हैं।उन्होंने हमें ज्ञात करवाया कि 1947 में बाबा साहेब अंबेडकर जी ने अपने शोध पत्र प्रस्तुति में कहा था कि भारत शुरुआत से लेकर अंत तक एक है। उन्होंने हमें यह भी ज्ञात करवाया कि भारत की चारों दिशाओं में स्वतंत्रता संग्राम को सर्वप्रथम आध्यात्मिक गुरुओं, व कवियों द्वारा अपनी लोकगीतों के द्वारा आरंभ किया गया।इस तरह भारत बोध को अपनी लोकगीतों और लोकगाथाओं द्वारा कवियों ने सबसे पहले उजागर किया।हमारी लोक परंपराएं हमारे नीहित गुणों जैसे समर्पण की सेवा को भी दर्शाती है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि यदि हमें भारतीयता के बारे में कुछ भी जानने कि उत्सुकता हो तो वह वनवासियों के बीच रह कर पर्याप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारत सर्व श्रेष्ठ देश ‘ सोने कि चिड़िया’ के नाम से जाना जाता था यह भी हमारी लोक परंपराओं व गाथाओं में आज भी जिंदा है। पंचनंद शोध संस्थान जैसे संस्थान इस दिशा में समाज को सुसंवादित करने में सदा प्रयत्नशील हैं।उन्होंने हमें ज्ञात करवाया कि 1947 में बाबा साहेब अंबेडकर जी ने अपने शोध पत्र प्रस्तुति में कहा था कि भारत शुरुआत से लेकर अंत तक एक है। उन्होंने हमें यह भी ज्ञात करवाया कि भारत की चारों दिशाओं में स्वतंत्रता संग्राम को सर्वप्रथम आध्यात्मिक गुरुओं, व कवियों द्वारा अपनी लोकगीतों के द्वारा आरंभ किया गया। इस तरह भारत बोध को अपनी लोकगीतों और लोकगाथाओं द्वारा कवियों ने सबसे पहले उजागर किया।हमारी लोक परंपराएं हमारे नीहित गुणों जैसे समर्पण की सेवा को भी दर्शाती है।


संगोष्ठी का शुभारंभ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य सत प्रकाश बंसल ने किया।कार्यक्रम की शरूआत सरस्वती माता को दीप प्रज्वलित कर किया गया। तत्पश्चात विश्वविद्यालय के कुलगीत का गान किया गया। इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों को शाल, टोपी व श्रीफल देकर सम्मानित किया गया। पंचनंद शोध संस्थान शिमला के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ मनु सुद ने संगोष्ठी में सम्मिलित विशेष अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में श्री जे. नंद कुमार द्वारा लिखित पुस्तक ‘ लोक बियोंड फोक’ का विमोचन किया गया। इस संगोष्ठी में माननीय कुलपति आचार्य सत प्रकाश जी ने कहा कि हम जाने अंजाने में लोक परंपराओं के बारे में अवश्य ही बात करते हैं। इस तरह के लोक मंथन हमारी परंपराओं व लोक संस्कृति पर प्रकाश डालने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हमारे राष्ट्र भारत में विविध खान पान, पहनावे होते हुए भी हम सभी को हमारी लोक परंपराओं ने हमारे राष्ट्र को एक सुत्र में बंधे रखा है। राष्ट्र शिक्षा इस दिशा में एक ऐसा नया कदम है जिसमें आत्मनिर्भर भारत ही एक मंत्र है। शिक्षाविद होने के नाते हम सभी का यह कर्तव्य है की इस राष्ट्र शिक्षा नीति को हम इस तरह कार्यन्वित करें ताकि भारत पुनः विश्वगुरु की पदवी पर विराजमान हो।


पंचनंद शोध संस्थान पंचकूला के अध्यक्ष प्राचार्य डाॅ.बी. के कुठियाला जी ने इस अवसर पर कहा कि संवाद समाज के मन को दर्शाता है। इस संवाद को उस दिशा में ले जाना चाहिये जो मानव और विश्व के हित में हो। संवाद को सुसंवादित बनाना पंचनंद शोध संस्थान जैसे संस्थान करते हैं । पंचनंद शोध संस्थान उत्तर भारत के पाच राज्यों में काम कर रहा है और इसके 42 केन्द्र हैं।इसका पहला मंथन भोपाल में हुआ, तत्पश्चात दूसरा रांची में हुआ और अब तीन दिवसीय मंथन सितंबर माह में गोहाटी में होने जा रहा है।

सभी सम्मिलित व्यक्तियों ने उत्सुकता से संगोष्ठी को सुना और प्रश्नावली की कड़ी में अपने प्रश्नों को उजागर किया। सभी प्रश्नों का विधिवत रूप से उत्तर दिया गया। इस संगोष्ठी में लगभग 70 लोगों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी के लिए प्रीति भोज करवाया गया।

Most Popular