मृगेंद्र पाल
गोहर (मंडी) : गोहर के सुप्रसिद्ध देव कमरुनाग का सरानाहुली मेला देव पूजा अर्चना के बाद शुरू हो गया। मेला दो दिनों तक चलेगा। देवता के गुर और देवता के किरदारों ने देव परिसर पहुंच कर पारम्परिक तरीके से देवता की पूजा की तथा कमरुनाग की पवित्र झील की परिक्रमा भी की।
मेला देखने और देवता के दर्शन व झील में डुबकी लगाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु अलग-अलग रास्तों से कमरुनाग मंदिर पहुंचे। पहुंचते ही देव कमरुनाग में आस्था का महाकुंभ उमड़ आया। मंदिर के समीप एक अनोखी झील है जहां पर मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालु सोने- चांदी के जेवर और सिक्के चढ़ाते आये हैं। यह परंपरा पांडवों के समय की चली आ रही है। कहा जाता है कि जब पांडव देव कमरुनाग से मिलने आए थे तो उन्होंने भी सोने-चांदी के गहने इस झील में अर्पित किए थे। इस अद्भुत झील का निर्माण भी पांडवों ने किया है।
जब पांडव देव कमरुनाग से मिलने आए थे तो देव कमरुनाग ने कहा कि उसे प्यास लगी है। तब भीम ने धरती पर वार किया और अपने हाथ से पानी की झील प्रकट की। साथ ही जाते समय सारा सोना-चांदी अपना इसी झील में डाल दिया। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है। लोगों ने इस बार भी परंपरा निभाई। हुए झील में करोड़ों-अरबों का खजाना है लेकिन कोई भी इसे निकाल नहीं सकता। कहते हैं कि इच्छाधारी नाग इस खजाने की रक्षा करते हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस क्षेत्र में ज्यादातर सांप की तरह दिखने वाले छोटे-छोटे पौधे मिलते हैं जो बिल्कुल सांप की तरह नजर आते हैं। देव कमरुनाग का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। श्री कृष्ण ने कमरूनाग से उसका सिर मांग लिया था और देव कमरुनाग इच्छा के अनुसार महाभारत का युद्ध देखना चाहता था। एक ऊंची शिला पर उसे स्थापित कर दिया। कमरूनाग झील के रहस्यों को जानकर सभी हैरान हैं।
प्रशासन की ओर से तहसीलदार गोहर अमित कुमार शर्मा देव पूजा में शामिल हुए। मेला कमेटी, देवता के कारदारों और मेले आए व्यापारियों से मेला सफल बनाने की अपील करते हुए उन्होंने पुलिस विभाग के जवानों से मेले अनुशासन बनाये रखने के आदेश दिए। मेला कमेटी की ओर से मेले में रात्रि ठहराव के लिए सरायों का प्रबंध किया गया है। प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों, बाहरी राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था की गई हैं। कमरुनाग जाने वाले सभी रास्तों पर स्थानीय लोगों ने पानी की छबीलें और जलपान के लिए टेंट लगाए हैं। रात में ठहरने वालों के विभिन्न धार्मिक संस्थाओं की ओर लंगर व भंडारों की भी व्यवस्था की गई है।