परवीन शर्मा
राजनैतिक इकाई के रूप में हिमाचल प्रदेश के गठन को 72 वर्ष हो चुके हैं। इस अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर 1,35,00 रुपए की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में हिमाचल में 1,95,255 रुपए प्रति व्यक्ति आय के साथ – साथ शिक्षा, सड़क और स्वास्थ्य में बेहतर प्रदर्शन जरूर एक सुखद एहसास करवाता है परन्तु सिक्के के दूसरे पहलू को देखें तो प्रत्येक हिमाचली के ऊपर 76,900 रुपए का कर्ज, 7272 करोड़ का राजकोषीय घाटा, कुल बजट का 41 फीसदी वेतन और पेंशन पर खर्च और विकास के लिए मात्र 35 से 38 प्रतिशत धन की उपलब्धता हमें यह सोचने के लिए मजबूर कर देती है कि क्या एक राज्य के तौर पर कहीं हम असफल तो नहीं हो रहे हैं ? विकास के लिए जो विभागीय और प्रशासनिक भारी भरकम ढांचा हमने खड़ा किया है कहीं वही विकास का मार्ग अवरूद्ध करके तो नहीं खड़ा हो गया है ? इन सभी पहलुओं की ईमानदारी से समीक्षा करने का समय आ गया है। गल सड़ी और बोझ बन चुकी व्यवस्थाओं के साथ चिपके रहने से कहीं बेहतर है कि कुछ अभिनव प्रयोग किए जाएं जो समान और सर्वांगीण विकास के साथ साथ देश के अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत हों।
राज्य गठन के पश्चात समर्पित राजनेताओं और नीति नियंताओं ने कठिन भागौलिक परिस्थितियों और क्षेत्रीय असमानताओं को ध्यान में रखते हुए राज्य निर्माण की इस प्रक्रिया में प्रशासनिक व्यवस्थाओं के साथ विभिन्न विभागों को शुरू किया। अपने पराये के भेद को दरकिनार करते हुए ईमानदारी पूर्वक प्रदेश के समान विकास के लिए आधारभूत ढांचे का निर्माण शुरू किया। सम्पूर्ण प्रदेश को ही अपना परिवार समझ कर विकास करने की चाह उन नेताओं में कितनी रही होगी उसे इस बात से समझा जा सकता है कि ठाकुर कर्म सिंह व वाई एस परमार जैसे सामर्थ्य शाली नेताओं ने अपने जीवनकाल में अपने गावं तक सड़क नहीं बनवाई। समय बीतने के साथ साथ विभागीय और प्रशासनिक व्यवस्थाएं योजनाबद्ध व जन आवश्यकताओं के अनुरूप ना होकर वोट बैंक की राजनीति का शिकार हो गई। किसी भी मुख्यमंत्री के दौरे के पश्चात उक्त क्षेत्र में कितने संस्थान , कितने डिवीजन व कितने सब-डिवीजन खोले गए , इन बातों को विकास का प्रतीक माने जाने लगा। इस अंधी दौड़ में हम भूल गए कि कुछ स्थानों पर बिना आवश्यकताओं से शुरू की गई इन व्यवस्थाओं से विकास तो नहीं परन्तु अधिकारियों कि लंबी चौड़ी फौज अवश्य खड़ी हो गई। इससे वी अाई पी कल्चर तो पनपा ही साथ में इनके वेतन भत्तों और पेंशन ने विकास के बजट को धीरे धीरे हड़पना शुरू कर दिया है। इसके विपरित धरातल पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या में निरंतर कटौती हो रही है।
किसी योजना के अंतर्गत ना होकर मात्र वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित होकर खोले गए संस्थान व शुरू की गई योजनाएं क्षेत्रीय असंतुलन और भेदभाव को तो जन्म देती ही हैं साथ में समग्र इकाई के रूप में प्रदेश विकास को भी ग्रहण लगती हैं । उदाहरण के लिए जिला मण्डी में ट्राईबल हॉस्टल के नाम पर बनाए गए एक बड़े भवन में शायद ही कोई ट्राईबल विद्यार्थी आज तक रुका हो। सफेद हाथी बन चुका यह संस्थान देश के आर्थिक संसाधनों का दुरुपयोग नहीं तो और क्या है ? लकीर के फकीर बन चुके अधिकारियों द्वारा गांधारी रूपी राजनेताओं के आंखों में ऐसी पट्टी बांध दी जाती है कि आंखें होते भी ये कुछ नहीं देखना चाहते हैं। सत्ता के बदलाव पर यह दुराग्रह, भेदभाव व तुष्टिकरण कम होने के बजाय बढ़ता जाता है। इसलिए आज आवश्यकता है घुन लगी इस पुरानी व्यवस्था को बदल कर एक ऐसी नई व्यवस्था खड़ी कि जाए जिसमे आर्थिक संसाधनों का बंटवारा पारदर्शी व समान हो जिससे प्रदेश के सभी क्षेत्रों को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप विकास करने के समान अवसर मिल सकें।
वर्तमान दौर में जब राजनेताओं की प्राथमिकताएं अपने विधानसभा क्षेत्र तक सीमित होकर रह गई है तब क्यों ना विधानसभा क्षेत्र को ही एक इकाई बना कर उसके अनुरूप ही विभागीय और प्रशासनिक ढांचे को खड़ा किया जाए। इससे अधिकारियों कि फौज तो घटेगी ही साथ में उस क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्ययोजना बनाने में भी आसानी होगी। इस प्रणाली के लिए आवश्यक है कि प्रदेश के सभी सब डिविजनों, ब्लॉक ऑफिसों, तहसीलों का पुनर्गठन विधानसभा स्तर पर किया जाए। इसी तरह लोकनिर्माण, सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग और विद्युत विभाग के भी डिवीजन प्रत्येक विधानसभा में खोलकर इन्हे एक सुपरिटेंडेंट इंजिनियर के हवाले किया जाए। जो तीनों विभागों में समन्वय बनाने का कार्य करे । पर्यटन, कृषि, बागवानी , पंचायती राज और अन्य विभागों का भी विधानसभा स्तर पर पुनर्गठन करना लाभदायक साबित होगा। चुने हुए प्रतिनिधि की योग्यता की परख भी इस सिस्टम में ज्यादा अच्छे से हो पाएगी। इस प्रणाली कि सफलता के लिए आवश्यक है कि प्रदेश स्तर पर उपलब्ध आर्थिक संसाधनों का बंटवारा समान व न्यायपूर्ण हो। केन्द्रीय करों का बंटवारा और विभिन्न प्रदेशों के लिए केन्द्रीय सहायता व अनुदान देने के लिए जनसंख्या आधारित जो फॉर्मूला केंद्रीय नीति आयोग अपनाता है लगभग उसी फार्मूले के तहत प्रदेश में आर्थिक संसाधनों का बंटवारा समान विकास की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा। किसी भी व्यवस्था में एकदम से परिवर्तन के लिए जनता तैयार नहीं हो पाती है इसके लिए दो या तीन विधानसभा क्षेत्रों को प्रयोगात्मक रूप से चुन कर इस के परिणामों की समीक्षा करनी चाहिए। इस मॉडल की सफलता प्रदेश मे विकास के नए आयाम स्थापित करेगी ।
प्रवीण कुमार शर्मा
सतत विकास चिंतक