एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के छात्रों ने कविता पाठ, परिचर्चा, स्केच-लेखन के माध्यम से कोरोनाकाल में सकारात्मक विचारों पर दिया संदेश, विजेता सम्मानित
शिमला, जीवन का कोलाहल अभी थमा नहीं, संकटों के बादल छठ जाएंगें, कितने ही कोरोना आएं, जीवन कभी नहीं मरता। कुछ यूं गुनगना गए स्थानीय एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के इंग्लिश व मानविकी विभाग के छात्र। पिछले कल वीरवार को एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी व मानविकी की ओर से विभागाध्यक्ष डॉ. कुशा पंडित चावला के तत्वावधान में एक दिवसीय ऑनलाइन कविता पाठ, लेखन, परिचर्चा व स्केच-लेखन प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई। प्रतियोगिता में अंग्रेज़ी व मानविकी विभाग सहित विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के छात्रों ने इस प्रतियोगिता में बढ़चढ़कर भाग लिया। छात्रों ने कविता पाठ, लेखन, स्केच-लेखन के माध्यम से अपनी सृजनात्मक प्रतिभा को निखारते हुए कोरोनकाल में सकारात्मक जीवन जीने का संदेश दिया और बेबाक अपने विचार साझा किए। प्रतियोगिता का विषय शिक्षा प्रणाली में महामारी और सकारात्मक परिवर्तन व क्या टेक्नोलॉजी और बेरोज़गारी में वृद्धि रहा। इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। कुलपति प्रो. रमेश चौहान ने विश्वविद्यालय के छात्रों व प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि युवा समाज को अपनी सृजनात्मक प्रतिभा से सकारात्मक सामाजिक विकास के लिए अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। कुलपति ने कहा कि स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय स्तर पर करवाई जाने वाली साहित्य, लेखन व परिचर्चा प्रतियोगिता से छात्रों के अन्दर छिपी सृजनात्मक शक्ति से समाज को नई दिशा मिलती हैं और मुश्किलों का समाधान होता है और नवसृजन को बल मिलता है। उन्होंने कहा कि युवाओं के सृजन शक्ति से राष्ट्र व समाज नए नवाचारों से विकसित होता है और जीवन को नई दिशा भी मिलती है। कुलपति ने विश्व प्रसिद्ध साहित्यकारों, गुरुओं व वैज्ञानिकों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने किशोरावस्था में ही सृजनात्मक कार्यों चाहे साहित्य लेखन हो या कविता लेखन या वैज्ञानिक दृष्टिकोण आरंभ कर मानव समुदाय को सुलभ व साकारात्मक जीवन जीने का रास्ता दिखाया है। कुलपति चौहान ने कहा कि छात्रों को शंकराचार्य, विलियम शेक्सपियर, मुंशी प्रेमचंद, जॉन कीट्स, आईंस्टीन जैसी अनगनित महान प्रतिभाओं के जीवन संघर्ष से सीख लेनी चाहिए कि किस तरह उनके सकारात्मक विचारों ने मानव जीवन को नई जीवनधारा दी जो आज भी अमृत के समान निरंतर बह रही है और इससे मानव रूपी पौधा उग रहा है। प्रो. चौहान ने कहा कि सृजनात्मक शक्ति से ही कोरोना जैसी वैश्विक महामारी पर विजय हासिल की जा सकती है। प्रतियोगी कार्यक्रम की एंकर एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के मानविकी विभाग की ओर से सहायक आचार्य शालिनी चौहान और डॉ. स्तुति पंडित, हिमाद्रि, डॉ. सोनू बतौर प्रतियोगिता जज व चंडीगढ़ विश्वविद्यालय की ओर से स्किल ट्रेनर रुचिका शर्मा बतौर एक्सटर्नल प्रतियोगिता जज रहीं। रुचिका शर्मा ने बतौर स्किल डेवलपमेंट ट्रेनर छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि सही ज्ञान, सृजनात्मक कार्य, कला व नवाचारों से कुछ भी असंभव नहीं है। रुचिका शर्मा ने कहा कि छात्रों में युवा सोच के साथ उनके दिल व दिमाग में नई सृजन व नवाचार पनपते हैं परंतु उन्हें व्यक्त करने के लिए युवाओं को प्लेटफॉर्म मिलना अति आवश्यक है। विभागाध्यक्ष डॉ. कुशा पंडित चावला ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से प्रतिभाओं को उनके सृजनात्मक लेखन, साहित्य लेखन व नवाचारों को सामाजिक विकास में समाविष्ट किया जा सकता है और इस दिशा में एपीजी शिमला विश्वविद्यालय व मानविकी विभाग हमेशा प्रयासरत है ताकि छात्रों में छिपी प्रतिभा को निखारा जा सके। इस लेखन, कविता पाठ व स्केच-लेखन प्रतियोगिता में अंग्रेज़ी व मानविकी विभाग के छात्र-छात्राएं राधिका, कर्मा, राहुल जॉर्ज, शिवांगी साधु, आकाँक्षा, मनोरमा शर्मा अव्वल स्थान पर रहे जिन्हें कुलपति प्रो.रमेश चौहान और विभागाध्यक्ष डॉ. कुशा पंडित चावला की ओर से ई-सम्मानित पत्र से नवाज़ा गया। इस प्रतियोगिता कार्यक्रम के दौरान एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के छात्र, प्राध्यापक, सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, डीन, कुलसचिव, कार्यकारी अधिकारी, निदेशक उपस्थित रहे।
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