जीवन और मृत्यु प्रकृति का नियम है। यह भी सच है कि हम में से हर कोई व्यक्ति हमेशा जीवित रहना चाहता है, पर क्या यह मुमकिन है? सही से देखें तो यह भी मुमकिन है, किसी और के शरीर में खुद को जीवित रखा जा सकता है। किसी और को अंग दान करके जीवन दान देने का एहसास ही अलग है और इसी एहसास को जीने का मौका देती है स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) हिमाचल प्रदेश जोकि प्रदेश भर में अंगदान की महत्वता के प्रति लोगों को जागरूक कर रही है। यह संदेश वीरवार कोशिमला के आरकेएमवी के सभागार में यूथ रेड क्रॉस व सोटो की ओर से आयोजित कार्यक्रम में छात्राओं को संबोधित करते हुए सोटो संयुक्त निदेशक डॉ शोमिन धीमान ने दिया । कार्यक्रम में कॉलेज प्रधानाचार्य डॉ नवेंदु शर्मा विशेष तौर पर मौजूद रही। कॉलेज की करीब 80 छात्राओं ने अंगदान का शपथ पत्र भरकर अंग दान का संकल्प लिया। सोटो के संयुक्त निदेशक ने बताया कि जरूरतमंद का जीवन बचाने के लिए हमेशा डॉक्टर होना जरूरी नहीं है, अंगदान करके भी जरूरतमंद का जीवन बचाया जा सकता है।विदेशों में तो आज भी लोग अंगदान को लेकर बहुत जागरूक है, लेकिन भारत में ये जागरूकता लोगों तक पहुचाने की जरुरत है, इसके अलावा भारत देश में अंग तस्करी भी बढती जा रही है। अंग दान की प्रक्रिया अलग-अलग होती है। अंगों की भारी मांग है। यह दुखद है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लाखों लोग हर साल प्रत्यारोपण के इंतजार में मर जाते हैं। विभिन्न देशों की सरकारें अंगों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कदम उठा रही हैं और कुछ हिस्सों में दानदाताओं की संख्या बढ़ी है।कार्यक्रम के अंत में कॉलेज प्रधानाचार्या ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि समाज में अंगदान को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां फैली हुई है। भ्रांतियों को समय रहते दूर किया जाना चाहिए और अधिक से अधिक लोगों को इसके महत्व के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। उन्होंने सोटो द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की। इसके बाद यूथ रेड क्रॉस की संयोजिका डॉ सरोज भारद्वाज ने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति होने के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। अंगदान जरूरतमंद के लिए वरदान साबित हो सकता है। इस दौरान सोटो ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर नरेश व कॉलेज की 350 छात्राएं मौजूद रही
अंगदान जरूरतमंद के लिए वरदान
अंगदान करने वाला व्यक्ति ऑर्गन के जरिए 8 लोगों का जीवन बचा सकता है। जीवित अंगदाता किडनी, लीवर का भाग, फेफड़े का भाग और बोन मैरो दान दे सकते हैं, वहीं मृत्युदाता यकृत, गुर्दे, फेफड़े, पेनक्रियाज, कॉर्निया और त्वचा दान कर सकते हैं। गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों और दुर्घटनाग्रस्त मरीजों के ब्रेन डेड होने के बाद यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
पारिवारिक सहमति जरूरी
अस्पताल में मरीज को निगरानी में रखा जाता है और विशेष कमेटी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करती है। मृतक के अंग लेने के लिए पारिवारिक जनों की सहमति बेहद जरूरी रहती है। डॉ शोमिन ने बताया कि ब्रेन डेड मरीज के परिजनों को अंगदान के लिए प्रेरित करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। अंगदान के प्रति अनेक प्रकार की भ्रांतियां उन्हें यह परोपकार के कार्य करने नहीं देती। उन्होंने छात्रों से अनुरोध करते हुए कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में अंगदान को लेकर जागरूकता फैलाएं ताकि जरूरतमंद को नई जिंदगी मिल सके ।