प्रदेश में इनकम टैक्स देय धारकों को पीडीएस सिस्टम के तहत मिलने वाले राशन सब्सिडी में एक वर्ष की कटौती के साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत डेढ़ लाख अतिरिक्त लोगों को शामिल करने के प्रदेश सरकार के फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया का होना स्वाभाविक है क्योंकि सरकार के इस निर्णय से तीन लाख व्यक्ति प्रभावित होंगे । सरकार द्वारा लिए गए इस महत्पूर्ण फैसले पर प्रश्नचिन्ह खड़े करने या किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पूर्व वस्तुस्थिति का अवलोकन करना आवश्यक है।
खाद्य आपूर्ति विभाग के अनुसार प्रदेश में इस समय 18,42,104 राशन कार्ड धारक हैं जिन्हें हम दो भागों में बांट सकते है पहली श्रेणी में बीपीएल (2,80,618) अन्तोदय अन्नपूर्णा योजना( एएवाई) (1,85,070) प्राथमिकता घर (पीएच) (2,21,238 ) परिवार आते हैं दूसरी श्रेणी में गरीबी रेखा से ऊपर ( ए पी एल ) परिवार आते है पहली श्रेणी में 6,28,226परिवार आते हैं इन परिवारों को राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत केंद्र सरकार बहुत ही सस्ता राशन उपलब्ध करवाती है प्रदेश सरकार द्वारा इसी श्रेणी में आयसीमा को 45,000 रू बढ़ाए जाने से डेढ़ लाख अतिरिक्त लोग प्राथमिकता घर की श्रेणी में आने से एनएफएसए का फायदा ले पाएंगे। जबकि दूसरी श्रेणी अर्थात ए पी एल परिवारों जिनकी संख्या लगभग 1155128 है उन्हें प्रदेश सरकार अपने संसाधनों से राशन में सब्सिडी प्रदान करती है। इस श्रेणी को केंद्र सरकार कोई सहायता नहीं देती है।
वर्ष 2000, में शुरू कि गई अंतोदय अन्नपूर्णा योजना के शिल्पकार पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री शांताकुमार को माना जाता है वहीं प्रदेश में एपीएल परिवारों को राशन में सब्सिडी देने की शुरुआत (2003 -07) में कांग्रेस सरकार ने की थी । वो अलग बात है कि बजटीय प्रावधानों के बिना शुरू की गई इस योजना की लगभग 70 करोड़ की देनदारी आगामी भाजपा सरकार को चुकानी पड़ी थी। प्रो प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने भी राजनैतिक दुराग्रह से ऊपर उठकर इस योजना को जारी रखा। और वह समय पीडीएस प्रणाली में सुधारों का समय मना जाता रहा है। पीडीएस सिस्टम के तहत शुरू कि गई इस योजना में साधारण व्यक्ति से लेकर महामहिम राज्यपाल तक सभी राशनकार्ड धारक सब्सिडी पर राशन लेने के लिए पात्र हैं। इस योजना के तहत 20 किलो आटा, 15 किलो चावल, तीन दालें, खाद्य तेल, नमक और चीनी पर प्रदेश सरकार उपदान उपलब्ध करवाती है। विभिन्न सरकारें बदलने पर भी खाद्य पदार्थों की मात्रा में छोटे मोटे परिवर्तनों के साथ यह योजना अनवरत जारी रही।
ए पी एल परिवारों को राशन में सब्सिडी देने की यह योजना शुरुआत से ही विवादों के घेरे में रही है कभी योजना के नामकरण में तो कभी साथ में दिए जाने वाले थैलों में नेताओं की तस्वीर को लेकर विवाद खड़ा होता रहा है। राशन खरीदारी की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार, खराब व घटिया राशन , राशन की मात्रा में कटौती व समय पर राशन ना मिलना जैसे आरोप इस योजना के जन्म के समय लगने शुरू हो गए थे वो अभी तक जारी हैं। इस बीच कई बार यह मांग भी उठी की राशन पर सब्सिडी देने के बजाय राशन कार्ड धारकों के खाते में सब्सिडी की राशि हस्तांतरित कर दी जाए। जिससे वो अपनी मर्ज़ी से
राशन ले सके और धांधलियों के आरोपों से भी मुक्ति मिल सके। अगर सरकार यह निर्णय लेती है तो प्रत्येक परिवार को प्रतिवर्ष लगभग 2000 रुपए की सब्सिडी मिलेगी।
इस योजना को लेकर जनता में भी हमेशा विरोधाभास रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि प्रदेश के सम्पन्न परिवार, विधायक, उच्चाधिकारी व कर्मचारी जो महंगाई भत्ता लेते हैं उन्हें यह सब्सिडी नहीं देनी चाहिए। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस मत के भी है कि बीपीएल , एएवाई या पीएच की सूची में कुछ अपात्र लोग भी शामिल हो गए है और जो सही मायनों में गरीब हैं वो इस सूची से बाहर रह गए है। सिर्फ सूची में नहीं होने के कारण गरीब लोगों को राशन की सब्सिडी से वंचित नहीं किया जा सकता है। इन सभी तर्को के बीच इस योजना में वोट बैंक के प्रभावित होने की आशंका से कभी वांछित सुधार नहीं हो पाया।
प्रत्येक एपीएल परिवार को प्रतिमाह लगभग 165 रुपए की यह सब्सिडी उस परिवार के लिए भले ही छोटी सी राशि है पर सरकारी खजाने पर इस उपदान से 230 करोड़ रुपए का भारी भरकम बोझ हर वर्ष पड़ जाता है। इसलिए जब भी सरकार पर अनुत्पादक खर्चों को घटाने का दवाब पड़ता है तो सबसे पहले अधिकारियों की नजर इसी योजना पर पड़ती है। वर्तमान बजट सत्र में भी माननीय मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने एपीएल राशनकार्ड धारकों से अपील की थी कि वे पीडीएस के तहत मिलने वाले राशन का स्वेच्छा से परित्याग करें। इसके लिए उन्होंने एक विशेष अभियान चलाने की भी घोषणा की थी। हाल ही की केबिनेट बैठक में एपीएल परिवारों के राशन में कुछ शर्तों के साथ की जा रही कटौती का निर्णय सरकार द्वारा बजट सत्र में दिखाई गई प्रतिबद्धता को है दर्शा रहा है।
कोरोना के कहर के कारण आज विश्व के सभी देश आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं भारत भी इस से अछूता नहीं है देशव्यापी लॉक डाउन के चलते व्यावसायिक गतिविधियां बंद पड़ी है जिसका सीधा असर राज्यों की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश एक छोटा राज्य होने के कारण और संसाधनों में कमी के चलते हमारी आर्थिक स्थिति और भी ज्यादा खराब हो सकती है। रोजमर्रा के काम काज चलाने के लिए हम केंद्र सरकार का मुंह ताकते रहते हैं ऐसे में समय रहते प्रदेश की आय को बढ़ाने के लिए उठाए गए इस तरह के कदम आज भले ही कड़वे प्रतीत हो रहे हैं परन्तु आवलें की तरह कुछ समय के पश्चात इन निर्णयों का स्वाद मीठा ही आयेगा। प्रदेश में आर्थिक संसाधन बढ़े , इस दिशा में सरकार लगातार प्रयत्न भी कर रही है कर्मचारियों व पेंशनरों के वेतन, पेंशन व भत्तों में कटौती, पेट्रोलियम पदार्थो के मूल्य में बढ़ोतरी व शराब पर अतिरिक्त मूल्य जैसे कई अन्य निर्णय सरकार के इन्हीं प्रयासों का हिस्सा हैं।
राशन सब्सिडी में कटौती से कहीं वास्तविक रूप से गरीब अपने अधिकार से वंचित ना हो, सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा। क्योंकि कोवि ड 19 महामारी के संकट समय में गरीबों को इस सब्सिडी की अत्यधिक आवश्यकता है। जनता को अगर यह विश्वाश हो गया कि सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले में नीति और नीयत दोनों ही साफ है तो कोई शक नहीं कि संकट की इस घड़ी में प्रदेश की जनता सरकार का साथ अवश्य देगी।