- 24 किलो सेब की पेटी का 22 किलो के हिसाब से मिल रहा दाम
शिमला, भाजपा विधायक बलबीर वर्मा और भाजपा नेता चेतन बरागटा सेब बागवान प्रदेश सरकार के फरमान के चलते असमंजस की स्थिति में है। सेब सीजन शुरू हो गया है लेकिन बागवानों को अभी तक यह भी पता नहीं कि उनको सेब बेचना कैसे है। प्रदेश सरकार ने बिना सोचे-समझे पेटी का वजन 24 किलो निर्धारित कर दिया है। बिना ग्राउंड वर्क, बिना तथ्यों की जानकारी जुटाए बिना किसी चर्चा के इस तरह के निर्णय बागवानों के लिए नुकसानदायक हो रहे है। सरकार ने कहा कि 24 किलो से अधिक पेटी न भरी जाए। बागवान सरकार का ये निर्णय मान भी ले लेकिन सरकार ये तो बताए की 24 किलो में आड़ती 2 किलो की कटौती क्यों कर रहे है। ये बागवानो के साथ सरेआम लुट हो रही है,जिसका हम कड़ा विरोध करते है।
भाजपा नेताओं ने कहा कि इस निर्णय को सरकार वापस ले,यह निर्णय किस आधार लिया गया है। पेटी में 2 किलो की कटौती किस नियम के तहत की जा रही है,इसकी जानकारी सरकार द्वारा बागवानों के सामने रखनी चाहिए। सेब किलो के हिसाब से बेचा जाए इसमे बागवान को कोई आपत्ति नही है,सेब के प्रत्येक दाने का उचित दाम बागवान को मिले लेकिन 24 किलो का वजन ही क्यों,यह एक बड़ा सवाल आज बागवानों के मन में है।भार तोलने की मशीन की हर बागवान को आवश्यकता रहेगी। जिसकी किमत मार्केट में 8000 से 15000 रुपये तक है। क्या सरकार सभी बागवानों को ये मशीनें उपलब्ध करवाने में सक्षम है सरकार इसका भी जवाब दे।
एक गणना के अनुसार जिस बागवान के 1000 पेटी सेब होती है, अब उस बागवान को 24 किलो वजन के कारण लगभग 1250 से 1300 तक पेटियां भरनी पड़ेगी। मतलब कि बागवान को 250 से 300 पेटियां अतिरिक्त भरनी पड़ेगी। इससे होगा क्या, इससे बागवान का खर्चा बढ़ेगा, जैसे खाली कार्टन, उसके अंदर लगने वाला ट्रे, सेप्रेटर आदि मैटीरियल, लेबर कॉस्ट, कैरिज, ट्रांसपोर्ट इत्यादि। ऐसे में इससे बागवान को लाभ के बजाय उल्टा नुकसान हो रहा है।
दुसरा बागवान ने 24 किलो पेटी के हिसाब से सेब मंडी तक पहुंचाया भी, तो क्या माप-तोल पर दोनों पक्षों की सहमति बन पाएगी ? नही बन पाएगी वो इसलिए कयोकि 24 किलोग्राम पेटी पर 22 किलोग्राम का पैसा आज की व्यवस्था के अनुरूप बागवानों को मिल रहा है।
चेतन बरागटा ने कहा कि सरकार के बिना सोचे समझे इस निर्णय से बागवान और खरीदार यानी लदानी में कलह पैदा हो रही है। जिस कारण हो सकता है कि 24 किलो के वजन वाले तुगलकी फरमान की वजह से बागवान बाहरी राज्यों की मंडियों की ओर रुख कर लें। यहां के आढ़ती व व्यापारी भी बाहरी मंडियों की ओर पलायन कर सकते हैं, जिस कारण प्रदेश को रेवेन्यू का नुकसान भी झेलना पड़ सकता है।
यूनिवर्सल कार्टर लाना आज की मांग है लेकिन यूनिवर्सल कार्टन का प्रयोग तो तब किया जा सकता है, जब पहले गत्ता उद्योग इस आकार के कार्टन बनाने को तैयार हों,क्या गत्ता उद्योग इसके लिए तैयार है? इस पर भी मंथन करने की आवश्यकता है।
भाजपा नेताओं ने कहा कि सेब बाहुल्य क्षेत्र से कैबिनेट मंत्री, सीपीएस के साथ-साथ कैबिनेट रैंक के कई अधिकारी भी प्रदेश सरकार में है।
जब ये लोग विपक्ष में थे तो इनका कहना था कि जब हम सत्ता में आएगे तो एपीएमसी एक्ट 2005 को लागु करेंगे। तो मै इनसे मांग करता हूँ कि एपीएमसी 2005 अक्षरश लागु किया जाए। बागवानी के क्षेत्र में सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई। इसलिए फिलहाल सरकार से निवेदन है कि बागवानों को अपना उत्पाद बेचने की स्वतंत्रता दी जाए।