देहरादून जिस जंगल को बचाने के लिए रैणी गांव की गौरा देवी और उनकी सहेलियों को विश्व स्तर का चिपको आंदोलन चलाना पड़ा, वह जंगल भी ऋषि गंगा के सैलाब की चपेट में है। ऋषि गंगा के दोनों ओर की घाटियों में लगभग 200 हेक्टेयर वन क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो गया है, इस जल प्रलय से देवदार, सुराई ,चीड़, केल सहित अन्य पेड़ों को नुकसान पहुंचा है। साथ ही भारी मात्रा में वन संपदा तबाह हो गई है। इस 200 हेक्टेयर क्षेत्र में रहने वाले जीव जंतु कस्तूरी मृग, हिमालयन थार, घुरड़, भूरा भालू के साथ ही अन्य दुर्लभ को भी भारी नुकसान पहुंचा है। रैणी गांव के पंगराड़ी के जंगलों में चिपको आंदोलन वर्ष 1973 में शुरू हुआ था और यह आंदोलन क्षेत्र की महिलाओं द्वारा पेड़ों की रक्षा के लिए किया गया था। इस जंगल को हरा-भरा रखन के लिए आज भी क्षेत्र की महिलाएं आगे रहती हैं। लेकिन प्राकृतिक आपदा के चलते यह जंगल छिन्न भिन्न होकर रह गया है। ऋषि गंगा के मुहाने पर टूटे ग्लेशियर से नदी ने रौद्र रुप धारण कर रैणी गांव के जंगल को भारी नुकसान पहुंचाया। अब जंगल के निचले क्षेत्र में भूस्खलन भी सक्रिय हो गया है। रैणी गांव के प्रधान भवान सिंह राणा का कहना है कि ग्रामीणों में आज भी अपने जंगलों को बचाने के लिए जागरुकता थी। चिपको आंदोलन के बाद से ही इस जंगल को एक नई पहचान मिली थी। कई वन विशेषज्ञ यहां शोध करने पहुंचते थे। लेकिन आज आपदा ने मानवों के साथ ही वनस्पति को भी नहीं छोड़ा। चिपको आंदोलन का साक्षी रैणी गांव का जंगल अब आपदा की भेंट चढ़ गया है। नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क डीएफओ नंदबल्लभ शर्मा का कहना है कि इस जल प्रलय से लगभग 200 हेक्टेयर जंगल बह गया है। यहां केल, सुराई, देवदार, बांज, बुरांस के संरक्षित पेड़ थे। अब जंगल उजाड़ लग रहा है।
Trending Now