Saturday, November 23, 2024
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रोगमुक्त जीवन के लिए मोटे अनाज सर्वोत्तमः डॉ. खादर वली

सोलन: भारत में मरूस्थलीकरण तेजी से बढ़ रहा है, मौजूदा आंकड़ों के अनुसार भारत में 29.76 प्रतिशत भूमि बंजर हो गई है। इसके साथ ही देश के सामने पोषणयुक्त खाद्यान्न की समस्या भी मुंह उठाए खड़ी है। इन सभी समस्याओं के हल के लिए मोटे अनाजों की खेती को मिलेट मैन के नाम से विख्यात डॉ. खादर वली ने सर्वोत्तम माना है। सोमवार को डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय सोलन में ‘आहार से आरोग्य’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में डॉ. वली ने किसानों-अधिकारियों एवं कृषि वैज्ञानिकों के सामने अपने विचार रखे। डॉ. वली ने कहा कि अगर हमें रोगमुक्त जीवन जीना है तो मोटे अनाजों को उगाना और उनका उपभोग करना जरूरी है। मोटे अनाजों की ओर लौटने पर हमारी सेहत संबंधी दिक्कतें स्वतः खत्म हो जाएंगी।

स्वस्थ जीवन हेतु मोटे अनाजों के महत्व पर आयोजित एकदिवसीय कार्यशाला के दौरान डॉ. खादर वली ने कहा कि बीमारियों के बढ़ने का बड़ा कारण हमारा खान-पान है। हमें अपने खानपान को सुधारने की जरूरूत है। मोटे अनाज हमारे भोजन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। कन्नड़ भाषा में पंचरत्न का बड़ा उल्लेख है, ये पंचरत्न हैं- कोदा, कावणी, रागी, सांवा और हरा सांवा। इन पोषक अनाजों के लिए सिंचाई की जरूरत भी कम रहती है। गेहूं और चावल के उत्पादन के लिए जितना पानी साल भर में इस्तेमाल किया जाता है उतने पानी में 25 से 30 तक मोटे अनाज उगाए जा सकते हैं। पानी के लगातार दोहन से भूजल कम हो रहा है और बंजर भूमि का दायरा बढ़ता जा रहा है। डॉ. वली ने कहा कि मोटे अनाज लगाने से बंजर भूमि को उर्वरा बनाया जा सकता है। साथ ही इनके सेवन से कैंसर, बीपी, कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह जैसी घातक बीमारियों से बचा जा सकता है।

प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना की ओर से आयोजित कार्यक्रम में खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक डॉ. उमेंद्र दत्त ने कहा कि मोटे अनाज हमारे मूल अनाज हैं। इनमें पोषण के साथ रोगमुक्त रखने के गुण भी हैं। देवभूमि में इनकी खेती होती रही है और हमें इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।

नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने कहा कि हमारे यहां मोटे अनाजों का सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व रहा है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में देव कार्यों के लिए इनका उपयोग किया जाता है। पुराने जमाने में लोग प्रायः इनका सेवन करते थे लेकिन वक्त के साथ लोगों ने इन्हें उगाना और खाना कम कर दिया। अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुराने पोषक अनाजों के संरक्षण एवं संवर्धन की बात चल रही है और मुझे भरोसा है कि हिमाचल इसमें 

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