क्या देश अब सच में ही प्राइवेट के हाथों में चला जाएगा
हमीरपुर : कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा ने केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर को फिर निशाने पर लेते हुए कहा है कि अनुराग बताएं कि क्या देश की माली हालत वास्तव में ही इतनी खराब हो चुकी है कि अब सरकार को हर सरकारी उपक्रम के साथ हर सिस्टम प्राइवेट हाथों में सौंपना पड़ेगा। राणा बोले कि अनुराग ठाकुर का संबंध हमीरपुर क्षेत्र की जनता की जनभावनाओं, अपेक्षाओं व अकांक्षओं के साथ सीधा नाता है। अगर देश की जनता को नहीं बताना चाहते तो कम से कम अपने गृह क्षेत्र की जनता के साथ-साथ हिमाचल की जनता को तो वास्तविक स्थिति समझा दें। राणा ने कहा कि हालात यह बन चुके हैं कि अब सरकार का अपना मानना है कि सब कुछ प्राइवेट सैक्टर में ही होगा तो क्या देश व प्रदेश की जनता ने उन्हें इसलिए चुना था। हर चुनाव से पहले बीजेपी बातें आम आदमी के साथ किसानों के लिए नीतियां बनांने की करती रही है। जिस पर भरोसा करके आम आदमी व किसानों ने बीजेपी को प्रचंड जनादेश दिया लेकिन अब किसानों को दरकिनार करके कॉर्पोरेट सैक्टर के हक में नीतियां बनाई जा रही हैं। जबकि किसानों को फिर जुमलों के सहारे विश्वास करने के लिए छोड़ा जा रहा है। राणा बोले कि अब तक के सबसे फ्लॉप 45 पन्नों के बजट में केन्द्रीय वित्त मंत्री 43 पन्नें ही पढ़ पाई। केन्द्रीय वित्त मंत्री सीतारमण के जो राजनीतिक साथी व सहयोगी शुरू में बैंचों को थपथपा कर स्थिति को जबरन उल्लासपूर्ण रखने का प्रयास कर रहे थे। 2 घंटे 40 मिन्ट के बजट भाषण के 43वें पन्ने तक आते-आते उनके चेहरों पर भी उबाऊ थकान उबरने लगी थी। कारण साफ था क्योंकि बजट में आम आदमी के लिए कुछ है ही नहीं। शायद इस स्थिति को भांप कर केन्द्रीय वित्त मंत्री सीतारमण ने बजट भाषण के 43 पन्नें पढ़कर ही अपने कर्तव्य की इतीश्री कर ली। राणा बोले कि जो लोग वित्त और बजट के बारे में जानते हैं वह इस बजट का अध्ययन करने के बाद सीधे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अब देश की सरकार के पास पैसा नहीं है। देश की बड़ी कंपनियों में से भारत सरकार के उपक्रम में चलने वाली 6 बड़ी कंपनियों के फरोख्त होने का खतरा इस बजट के बाद खतरे के निशान पर जा पहुंचा है। इंडियन ऑयल, ओएनजीसी, भारत पेट्रौलियम, हिन्दुस्तान पेट्रौलियम, कोल इंडिया, एसबीआई जैसी अकूत मुनाफा कमाने वाली कंपनियां सरकार की नीतियों के कारण नीलामी की कगार पर हैं। देश में डीसइन्वेस्टमेंट की बदत्तर स्थिति यह है कि पिछले बजट में ग्रामीण भारत के लिए 1 लाख 83 हजार करोड़ रुपए का टारगेट रखा गया था जबकि उसमें से सिर्फ 18 हजार रुपए की इन्वेस्टमेंट हुई है और अब इसी तरह इस बार कृषि क्षेत्र के लिए 2 लाख 83 हजार करोड़ रुपए का बजट एलोकेट हुआ है जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि पैसा है नहीं लेकिन बजट में दिखाना था, दिखा दिया। यह स्थिति देश के लिए बेहद खतरनाक है। अनुराग जी इस खतरनाक होती स्थिति से कम से कम हिमाचल को सच्चाई बता दीजिए।
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