पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज या भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है। इस साल भाई दूज बुधवार 26 अक्टूबर को मनाई जाएगी। यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। जिसमें बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं , आरती करती हैं और उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। दीपावली के बाद भाई दूज का त्योहार भी बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर भाई दूज का त्योहार मनाए जाने के पीछे क्या मान्यता है। दरअसल, भाई दूज की कथा यमराज और उसकी बहन यमुना से जुड़ी हुई है। भाई दूज की पूजा में हर भाई-बहन को यह कथा अवश्य सुननी चाहिए।
भैया दूज के लिए शुभ मुहूर्त
भाई दूज 26 अक्टूबर को 3 बजे के बाद से लेकर 27 अक्टूबर को एक बजे तक मनाई जा सकती है, जो बहनें और भाई 3 बजे तक व्रत रख सकते हैं वे 26 अक्टूबर को ही भैया दूज मना सकते हैं और अगर वे 27 अक्टूबर को भाईदूज मनाना चाहते हैं तो 27 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे तक मना सकते हैं. जो बहनें टीका करना चाहती हैं और 3 बजे तक उपवास कर सकती हैं वे 26 अक्टूबर को ही भैया दूज मना सकती हैं. नहीं तो आप बृहस्पतिवार को सुबह से लेकर एक बजे तक भैया दूज मना सकती हैं. भाई दूज के दिन तिलक का मुहूर्त दोपहर 1:12 से दोपहर 3:27 तक रहेगा.
भाई दूज अभिजीत मुहूर्त – 27 अक्टूबर 12:42 बजे – 12:57 बजे
तिलक विधि
भाई के लिए पिसे हुए चावल से चौक बनाएं.
भाई के हाथों पर चावल का घोल लगाएं.
भाई को तिलक लगाएं.
तिलक लगाने के बाद भाई की आरती उतारें.
भाई के हाथ में कलावा बांधें.
भाई को मिठाई खिलाएं
पूजा प्रक्रिया
आज के दिन भाई प्रातःवकाल चन्द्रमा का दर्शन करे.
इसके बाद यमुना के जल से स्नान करें , या ताजे जल से स्नान करें.
अपनी बहन के घर जाएँ और वहां बहन के हाथों से बना हुआ भोजन ग्रहण करें.
बहनें भाई को भोजन कराएँ , उनका तिलक करके आरती करें.
भाई यथाशक्ति अपनी बहन को उपहार दें.
भाई दूज मनाने का
एक मान्यता के अनुसार यमराज की बहन यमुना चाहती थीं कि उनका भाई उनके घर आकर उनसे मिले, लेकिन यमराज उनसे मिलने घर नहीं आ पाते थे. एक बार जब यमराज उनसे मिलने गए, तो यमुना ने अपने भाई का टीका किया. उन्हें मीठा खिलाया और बहुत आदर सत्कार किया.इन सबसे यमराज खूब प्रसन्न हुए. यमराज ने यमुना से एक वरदान मांगने को कहा. इसपर यमुना ने कहा कि वो एक ऐसा दिन अपनी बहन को दे दें, जिस दिन वो हर साल उसके घर आया करेंगे. तब से ही भाई दूज मनाने की परंपरा शुरू हुई.