Saturday, July 12, 2025
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1 मई को प्रदेश में मनाया जाएगा मज़दूर दिवस

शिमला: सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश की बैठक आज प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई जिसमें मजदूरों के चबालिस कानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड बनाने,सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण,ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली,आउटसोर्स नीति बनाने,स्कीम वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित करने,करुणामूलक रोज़गार देने,छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करने,सेवाओं के निजीकरण,मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी संशोधनों व नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन आदि मुद्दों पर आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया गया। राज्य कमेटी ने प्रदेश के लाखों मनरेगा मजदूरों के लिए सरकार द्वारा घोषित 350 रुपये न्यूनतम दिहाड़ी लागू करवाने के लिए अगस्त महीने में प्रदेशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया है।

बैठक में निर्णय लिया गया कि 1 मई को पूरे प्रदेश में मजदूर दिवस मनाया जाएगा। राज्य स्तरीय मजदूर दिवस कार्यक्रम चंबा जिला में होगा। सीटू के स्थापना दिवस पर 30 मई को प्रदेशभर में झंडारोहण के साथ ही सेमिनार व शिक्षा कार्यक्रम होंगे। बैठक में डॉ कश्मीर ठाकुर,विजेंद्र मेहरा,प्रेम गौतम,जगत राम,अजय दुलटा,बिहारी सेवगी,कुलदीप डोगरा,एन डी रणौत,राजेश शर्मा,भूपिंद्र सिंह,राजेश ठाकुर,नीलम जसवाल,रविन्द्र कुमार,सुदेश ठाकुर,केवल कुमार,जोगिंद्र कुमार,सुरेश राठौर,रंजन शर्मा,पदम् प्रभाकर,वीना देवी,बलबीर सिंह,ब्रिज लाल,हिमी देवी,मदन नेगी,बालक राम,किशोरी ढटवालिया,गुरदास वर्मा,रामप्रकाश आदि मौजूद रहे।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि मोदी सरकार मजदूर,कर्मचारी,किसान,महिला,नौजवान,छात्र,दलित विरोधी नीतियां लागू कर रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले सौ सालों में बने चौबालिस श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है। यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से अस्सी करोड़ से ज़्यादा मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से वे रोज़गार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा। मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में करोड़ों मजदूर बेरोज़गार हो गए हैं। मजदूरों को नियमित रोज़गार से वंचित करके फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जा रहा है। वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है।

        

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