देहरादून : जिस तरह देश के विभिन्न राज्यों में म्यूटेट कर रहा कोरोना वायरस पहले से ज्यादा खतरनाक हो रहा है, ऐसे में हर साल नई वैक्सीन ईजाद करनी पड़ेगी। यह कहना है कि दवा के निर्माण पर शोध कर रहीं वायरोलॉजिस्ट एवं आईआईटी की वैज्ञानिक डॉ. शैली तोमर का। आईआईटी के बायोटेक डिपार्टमेंट की प्रोफेसर डॉ. तोमर इन दिनों डिपार्टमेंट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी, भारत सरकार की ओर से मिले कोरोना के खिलाफ दवा बनाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। स्ट्रक्चरल बेस्ड एंटी वायरल ड्रग डिस्कवरी शीर्षक के इस प्रोजेक्ट के तहत ड्रग के मोलिक्यूल खोज लिए गए हैं। जो दवा के रूप में कोरोना को मात देंगे। डॉ. तोमर के अनुसार, जिस तरह से कोरोना वायरस अपना स्वरूप बदल रहा है, उससे यह साफ है कि वैक्सीन के साथ वायरस को बेअसर करने वाली दवाओं की भी जरूरत पड़ेगी। म्यूटेशन के चलते हो सकता है हर साल नई वैक्सीन बनानी पड़े, लेकिन एक बार दवा बनाने के बाद उसमें करीब तीन साल बाद परिवर्तन किए जाने की अमूमन आवश्यकता होती है। दवा एक बार बेअसर होने लगती है तो ओएच जैसे ग्रुप की मात्रा बढ़ाकर उसे कारगर किया जाता है।एचआईवी एड्स के वायरस में भी म्यूटेशन के चलते ही वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है। ऐसे में एचआईवी को बेअसर करने के लिए दवाओं का प्रयोग होता है। इसी तरह कोरोना वायरस के खात्मे के लिए वैक्सीन की भी उपयोगिता रहेगी, लेकिन इसके साथ ही ड्रग की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। डॉ. तोमर ने बताया कि इसके लिए कोरोना वायरस को टेस्ट ट्यूब में डाला जाएगा, जहां इसके सेल ग्रो करेंगे। इसके बाद इसमें खोजे गए मोलिक्यूल डाले जाएंगे, जो इस वायरस को खत्म करेंगे। यदि मॉलिक्यूल डालने के बाद वायरस ग्रो नहीं करता है तो मॉलिक्यूल से बनने वाली दवा कारगर होगी। इसके बाद वायरस और ड्रग दोनों को एनिमल में ग्रो किया जाएगा। फिर इसका क्लिनिकल ट्रायल किया जा सकेगा।उन्होंने बताया कि एक से डेढ़ महीने में इसके परिणाम सामने आने की उम्मीद है। डॉ. तोमर ने बताया कि कोरोना वायरस के सरफेस पर एस प्रोटीन में परिवर्तन आ रहे हैं। वैक्सीन बनाने में इसी एस प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाता है जबकि ड्रग, वायरस के एंजाइम का रूप होता है, जो कोरोना के सेल में जाकर उसे टारगेट करता है और वायरस को खत्म करता है। नई वैक्सीन बनाने में अब ज्यादा आसानी होगी। डॉ. तोमर के मुताबिक, अब विश्व भर में कंपनियों के पास वैक्सीन बनाने की पूरी प्रक्रिया और प्रोटोकॉल मौजूद है। ऐसे में बदलते वायरस स्ट्रेन के खिलाफ कुछ ही महीनों में नई वैक्सीन ईजाद की जा सकती है।
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